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ईस्वीसन् १२०० की सदी में पेथडकुमार का जीवन जगत् को उपयोगी हुवा है उसके गुरु उस वक्त सुप्रसिद्ध श्रीमद् धर्मघोष सूरीश्वर थे उनके लगभग २०० वरस के पीछे उनका चरित्र लिक्खा गया हो ऐसा मालुम होता है क्यों कि उनके पाट परम्परा पर श्री सौमसुन्दर आचार्य हुवे जो लगभग श्रीमद् देव सुन्दरसूरि और ज्ञान सागरसूरि के समय में हुवे हों ऐसा मालुम पडता है । उनके पीछे उनके पटधर मुनि सुन्दरसूरि हुवे और उनके पटधर रत्नसागरसूरि हुवे उनके शिष्य श्री नन्दी रत्नगणी और उनके शिष्य श्रीरत्न मंडन गणी हुवे जिन्होंने सुकृत सागर काव्य उपकारार्थ बनाया। वे प्रायः रत्नशेखर सूरिके वक्त में हुवे हों ऐसा विदित होता है । रत्नशेखर सूरि का जन्म संवत १४५२ में हुवा, १४६३ में दीक्षा ली, १४८३ में पण्डित हुवे, १४९३ में उपाध्याय हुवे, १५०२ में आचार्य पदवी प्राप्त की और १५१७ में स्वर्गस्थ हुवे। उस समय में यानि लगभग २०० बरस में यह वृत्तान्त लिक्खा गया हो ऐसा अनुमान होता है।
आशा है कि इस वृत्तान्त को पढकर पाठकगण उचित शिक्षा ग्रहण करेंगे।