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Second Proof DL. 31-3-2016-85
• महावीर दर्शन - महावीर कथा .
प्रतिभाव :
परिशिष्ट-3 (B) मुम्बई में अभूतपूर्व महावीर कथा प्रा. प्रतापकुमार टोलिया निर्मित 'महावीर कथा' संगीत-साहित्य-तत्वदर्शन कृति लांग प्लेकोम्पैक्ट डिस्क का विस्तृत मंचन कलकत्ता में प्रस्तुत करने के पश्चात् अभी अभी मुम्बई-विले पार्लेमें भी किया गया। अप्रैल अंत के इस त्रि-दिवसीय आयोजन में वहाँ की दार्शनिक संस्था 'चिंतन' ने, अभूतपूर्व रूप से, प्रा. प्रतापकुमार टोलिया, श्रीमती सुमित्रा टोलिया द्वारा महावीर जीवन कथा 'महावीर दर्शन' का प्रभावपूर्ण प्रस्तुतीकरण करवाया । इस संगीत-साहित्य-तत्त्वदर्शन के त्रिविध कथा-निरूपण में विविध भारतीय वाद्यसंगीतवृंद का सहयोग मिला था - स्वर्गीय जैन संगीतकार श्री शांतिलाल शाह के स्वनाम धन्य संगीत निर्देशक सुपुत्र श्री भरत शाह का, जो कि श्री कल्याणजी आणंदजी के सहायक रहे हैं एवं वायलिन-वादन पर उनका पचास वर्षों का विशुद्ध अधिकार है। बांसुरी एवं सितार आदि के साथ उनकी संगीत प्रस्तुति महावीर कथा के गीतों और कथानकप्रसंगों को जो उठाव, जो आकार दे रही थी वह देखते और सुनते ही बनता था। मानों कोई दैवी अनुग्रह !
ऐसे संगीत के माहौल में महावीर कथा के दौरान सतत बहती वागधारा-कोमेन्ट्री एवं काव्यधाराकविता पाठ भी अपना अमिट प्रभाव श्रोतासमूह पर छोड़ती और बरसाती गई। रोज के दो दो घंटो के तीन दिवसों से अंतर्लीन श्रोता मौन-शांत-प्रशांत रूप में महावीर जीवन के अगमलोक में अंतर्यात्रा-ध्यानमय भीतरी सफर करते करते जैसे खो ही गये थे दूसरी दुनिया में। ...
जन्म से लेकर निर्वाण तक के महावीर-जीवन-प्रसंग चलचित्र की लगातार चलती पट्टी और सरिता की निरंतर बहती धारा की भाँति प्रस्तुत होते गये... श्रोता मंत्रमुग्ध एवं अपना देहभाव विस्मृत होकर उसमें नहाते गये और अलौकिक आनंद की एक अपूर्व अनुभूति पाते गये... । इस प्रकार सारी ही, आधान्त कथा के मर्मी, बहुश्रुतः विद्वान् श्रोता एवं "प्रबुद्ध जीवन" के सम्पादक, कार्यक्रमअध्यक्ष, डो. धनवंत शाहने अपने इस आनन्दानुभव का प्रतिभाव समापन-संभाषण में इन शब्दों में दिया :
"हमारा यह शुभ पुण्यकर्म कि 'चिंतन' संस्था ने हमें यह सुअवसर प्राप्त करवाया । इन तीन दिनों कथागंगा, भक्तिगंगा, तत्त्वगंगा-यह सारा प्रतापभाई ने हमारे लिये परोसा ही नहीं, प्रवाहित किया है- झरने की भाँति बहता किया है। और सुमित्रा बहन कि जिसने कितना बड़ा साहित्य कार्यअनुवाद कार्य-संगीत निर्देशन कार्य किया है कि वह कुछ बोले ही नहीं, पर केवल 'गाती' ही है... ऐसे सुमित्रावहन हमें मिले, प्रतापभाई से भी दो कदम आगे ऐसी उनकी स्वरगंगा बही... ज्ञानगंगा
और वाग्गंगा दोनों मिले तो हमें कितना अपार आनन्दानुभव प्राप्त हो । उन दोनों और 'चिंतन' को मेरे इस कथा के सुंदर आयोजन के लिए अनेकशः नमन, अभिनंदन, अभिवादन...!"
- जिनभारती (080-26667882 / 45953440) (बेंगलोर-3-5-10)
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