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Second Proof DL.31-3-2016.82
• महावीर दर्शन - महावीर कथा .
प्रतिभाव :
| परिशिष्ट-3
प्रो. प्रतापकुमार टोलिया द्वारा प्रस्तुत महावीर कथा
लेखक : मनहरभाई कामदार - नवनीतभाई डगली
परिचय-संक्षेप : प्रा. प्रतापकुमार टोलिया जैन साहित्य के गहन अध्येता है।अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं। श्रीमद् राजचन्द्र के 'आत्मसिद्धि शास्त्र' का उन्होंने 'सप्तभाषी आत्मसिद्धि' शीर्षक से सात भाषाओं के अनुवाद का सम्पादन किया है। इसके अतिरिक्त अनेक ग्रंथों के सर्जक हैं। संगीतज्ञ हैं। ध्यान संगीत उनकी विशेषता है। 1974 में महावीर निर्वाण के 2500 वर्ष का महोत्सव भारत ने मनाया तब 'महावीर दर्शन' शीर्षक से जैन जगत को हिन्दी-अंग्रेजी में महावीर जीवन और चिंतन को प्रस्तुत करती हुई कथा की संगीत सभर रिकार्ड-सी.डी. का उन्होंने सृजन-समर्पण किया था जिसको बहुत अच्छा प्रतिभाव प्राप्त हुआ था।
- श्री मुंबई जैन युवक संघ ने 'महावीर कथा' का आयोजन किया तत्पश्चात् 'चिंतन' संस्था द्वारा विले-पार्ले-मुंबई में 24-25-26 अप्रैल को त्रिदिवसीय 'महावीर कथा' का आयोजन किया गया था । प्रा. प्रतापभाई टोलिया और आपश्री की पत्नी श्रीमती सुमित्रा बहन, कि जो भी गांधी विचारधारा की विदुषी हैं, अनेक ग्रंथों की अनुवादक एवं संगीतज्ञ हैं - इस दंपती ने संगीत वादक कलाकारों के सहयोग से त्रिदिवसीय महावीर कथा प्रस्तुत करके श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया था।
बेंगलोर स्थित श्री प्रतापभाई का फोन नं. है 080-65953440/09611231580
इस महावीर कथा का प्राप्त संक्षिप्त रिपॉर्ट 'प्रबुद्ध जीवन' के पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए आनंद-गौरव अनुभव करते हैं - सम्पादक, प्रबुध्ध जीवन)
दिनांक 24-25-26 अप्रैल को 'चिंतन'-विलेपार्ले द्वारा आयोजित 'महावीर कथा' प्रो.प्रतापकुमार टोलिया एवं श्रीमती सुमित्राबेन टोलिया के स्वमुख से प्रबुद्ध जिज्ञासुजनों की उपस्थिति में संपन्न हुई।
भगवान महावीर का प्रथम प्रश्न श्रोताओं के समक्ष आंतखोज के रूप में रखा गया कि 'मैं कौन हूँ?'। यह खोज-प्रश्न और उसका स्पष्ट, अनुभवसभर प्रत्युत्तर कि 'मैं आत्मा हूँ' - 'सत्त्विदानंदी शुद्ध स्वरूपी आत्मा' - वह भगवान महावीर के जीवन दर्शन का प्रधान बोध है। यह आंतबोधसूचक उनके सूत्र 'जे एगं जाणई से सव्वं जाणई' (जिसने आत्मा को जाना उसने सबकुछ जाना) का घोष-प्रतिघोष भगवान महावीर की स्वयं की जीवन कथा में सर्वत्र अनुगुञ्जित होता रहा।
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