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Second Proof DL. 31-3-2016.76
• महावीर दर्शन - महावीर कथा .
(प्र. F) जम्बू-नन्दीश्वर के द्वीपों से, भरत-महाविदेह के क्षेत्रों से और मेरु-अष्टापद-हिमालय की चोटियों से - (सूत्रघोष M) "जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइ ।" (वाद्य Instl. Effect) "जो एक को, आत्मा को जान लेता है, वह सब को, सारे जगत को जान लेता है।"
- वीरस्तुति - (श्लोकगानः भैरवी) "वीरः सर्व सुरासुरेन्द्र महितो, वीरं बुधा संश्रिताः ।
वीरेणाभिहतः स्वकर्मनिचयो, वीराय नित्यं नमः ॥ वीरात् तीर्थमिदं प्रवृत्त-मतुलं, वीरस्य घोरं तपो । वीरे श्री, धृति, कीर्ति, कान्ति निचयः । श्री वीर भद्रं दिश ॥"
॥ ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥
• परिशिष्ट .
अनुपम महावीर वचन : "महावीर का एक समय मात्र भी संसार का उपदेश नहीं है। उनके सारे प्रवचनों में उन्होंने वही प्रदर्शित किया है, वैसे ही स्वाचरण से भी उस प्रकार सिद्ध भी कर दिया है । कंचनवर्णी काया, यशोदा जैसी राणी, विपुल साम्राज्यलक्ष्मी और महा प्रतापी स्वजन परिवार का समूह फिर भी उसकी मोहिनी को उतार देकर ज्ञानदर्शनयोगपरायण होकर उन्होंने जो अद्भुतता प्रदर्शित की है, वह अनुपम है। उसका वही रहस्य प्रकाशित करते हुए पवित्र 'उत्तराध्ययन सूत्र' में आठवें अध्ययन की प्रथम गाथा में कपिल केवली के समीप तत्त्वाभिलाषी के मुखकमल से महावीर कहलवाते हैं कि -
'अधुवे असासयंमि संसारंमि दुख्खपउराए।
किं नाम हुज्ज कम्मं जेणाहं दुग्गई न गच्छिज्जा ॥' 'अधुव और अशाश्वत संसार में अनेक प्रकार के दुःख हैं, मैं ऐसी क्या करनी करुं कि जिस करनी से दुर्गति प्रति जाउं नहीं ?' xxx तत्त्वज्ञानचंद्र की सोलह कलाओं से पूर्ण होने के कारण से सर्वज्ञ महावीर के वचन तत्त्वज्ञान के लिये जो प्रमाण देते हैं वह महद्भूत, सर्वमान्य एवं केवल मंगलमय है।"
- - - श्रीमद् राजचन्द्र : भावनाबोध 17 वर्ष)V | (प्रा. प्रतापकुमार ज. टोलिया : जिनभारती : बेंगलोर (09611231580)
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