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Second Proof D. 31-3-2016 - 75
महावीर दर्शन - महावीर कथा .
(घोषसह प्र. M) "हं... हं... जाना जाना... कि सचमुच, वीतराग निःस्नेह होते हैं... मेरा ही अपराध कि मैंने श्रुत का उपयोग नहीं रखा... धिक् मेरे इस एकपक्षीय स्नेहराग को... बस हुआ उस स्नेह से ।... "मैं अकेला हूँ, मुरा कुछ भी नहीं, कोई भी नहीं... एगोऽहम् नत्थि मे कोई, एगोऽहम्'... (प्र. F) - इस 'एकत्व भावना'-युक्त गहन आत्मचिंतन-श्रेणि के चरम पर चढ़ते चढ़ते छूटे वे प्रमादपूर्ण आर्तध्यान से, पहुँचे आत्मभावना द्वारा आत्मध्यान-शुद्धात्म ध्यान के शैल शिखर पर में और तुरन्त ही हुआ उन्हें केवलज्ञान ! (Soormandal) (वृंदगीतः धून)"भाते आतमभावना, जीव पावे केवलज्ञान रे" (2) (आ.सि.)
"मातमभावना मापता 4G डेवलज्ञान ३..." (2) .
"वीर प्रभु का हुआ निर्वाण, गौतम स्वामी केवलज्ञान ।" (2) (प्र. M) वीरप्रभु की विद्यमानता में नहीं, निर्वाण के बाद हुआ उन्हें केवलज्ञान ! वास्तव में विषाद, राग और अहंकार हानिकर्ता हैं, परंतु गौतमस्वामी की तो यह कैसी आश्चर्यभरी भवितव्यता कि उन्हें अहंकार धर्मबोध-प्राप्ति का हेतु बना, राग (प्रशस्त राग) गुरुभक्ति का कारण बना
और विषाद केवलज्ञान का निमित्त ! (सूत्रगान) "अहंकारोऽपि बोधाय, रागोऽपि गुरुभक्तये ।
विषादः केवलायाभूत्, चित्रं श्री गौतमप्रभोः ।" (आत्मचिंतन पार्श्वधून) "आतमभावना मातi 4 d उपलशान रे..." . "शुध्ध जुध्ध येतन्यधन, स्वयं ज्योति सुमधाम; .
બીજું કહિએ કેટલું, કર વિચાર તો પામ !” (New Rising Music)
(Instrumental BGM) (प्र. M) आज पच्चीस सौ वर्षों के पश्चात् (विहगवृंद ध्वनि : प्रभात संकेत Effect)...
आती है उस चिर महान आत्मा की - भगवान् महावीर की यह आवाज़: (सूत्रघोष) "मित्ती मे सव्व भूएसु, वैरं मज्झं न केणई ।"
(सब से मेरी मैत्री वैर नही किसी से) (गान) "शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः ।
दोषाः प्रयान्तु नाशम्, सर्वत्र सुखी भवन्तु लोकाः ॥" (सर्व विश्वजीव सर्वत्र सर्वथा सुखी हों, अन्यों के उपकारक हों, सर्वजीवों के दोष नष्ट हों।) (प्र. M) आज गूंजती है - तीर्थंकर भगवंत महावीर के मंगलदर्शन की वह "वर्धमान भारती", वह जग-कल्याणीवाणी ('जिनभारती')
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