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Second Proor DL 31-3-2016.63
• महावीर दर्शन - महावीर कथा .
साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका (संघ) विधान अद्भुत बनवाया; महाक्रान्ति का शंख फूंककर सोये जग को जगाया (जगा उठवाया)
(Instrumental BGM) (गान) उस वक्त 'धर्म' के नाम पर सचमुच पाखंड़ियों का राज था ।
यज्ञों की बलियों मे बेचारा निर्दोष पशूधन हो रहा ताराज़ था ॥ (प्र. F) इस महाहिंसा की घोर नींद में डूबी दुनिया का प्रभु जिनेश्वर ने झकझोर कर जगाया - तब और अभी भी ! (Instrumental Interlude) (गान : F/CH) "वीर जिनेश्वर ! सोई दुनिया जगाई तूने ... ! ज्ञान की मधुर सुरीली बंसी बजाई तूने ... !
वीर जिनेश्वर ! सोई दुनिया - पशुओं पर छुरियाँ चलतीं, रक्त की नदियां बहतीं। ..... करुणा के सागर ! करुणागंगा बहाई तूने ... !
वीर जिनेश्वर ! सोई दुनिया - पंथों का झूठा झगड़ा, जनता का मानस बिगड़ा मानव की अटल प्रतिष्ठा, जग में जताई तूने ... !
वीर जिनेश्वर ! सोई दुनिया - पापों का पंक धोना, "नर से नारायण" होना। 'अमर' को अमर पद की राह दिखाई तूने... !
वीर जिनेश्वर ! सोई दुनिया -
(- उपाध्याय अमरमुनि, वीरायतन) (प्र. M) सारे युग पर, सचराचर निखिल विश्व पर छा जानेवाला; समय की एवं सनातन अनागत काल की समग्र समस्याओं को जड़मूल से सुलझानेवाला, सभी का उदय मंगल चाहनेवाला वीर जिनेश्वर का यह कैसा विशाल, विराट, व्यक्तित्व... ! कैसा अनुपम सर्वोदय तीर्थ - अतुल तीर्थ - प्रवर्तक... !! कैसा अभूतपूर्व महाक्रान्तिकार युगदृष्टा-युगस्रष्टा कर्मवीर, क्षमावीर, प्रयोग-पुरुषार्थ वीर... !!! (प्र. F) क्या हम कल्पना भी कर सकते हैं आज के हमारे इस त्रस्त-ध्वस्त-हिंसाग्रस्त आतंकित जग में (युग में) जीते हुए, बैठे हुए कि जहाँ - (काव्यपाठ M) "धधक रही चहुँ ओर हिंसा-ज्वालाएँ,
धडाधड़ खुल रहीं वधशालाएँ-मधुशालाएँ; और अब भी बिक रहीं हैं -
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