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Second Proof Dt. 31-3-2016 - 6
• महावीर दर्शन - महावीर कथा •
ऐसे स्वानुभूत, महावीर के अंतर्मार्ग-ज्ञाता सद्गुरु से, परमगुरु श्रीमद् राजचन्द्रजी के अंतर्बोध को परिभाषित, प्रतिध्वनित करनेवाले तत्त्व को आत्मतत्व को पाने का हमें जो दुर्लभ योग मिला है, वह वर्णनातीत है। आत्म-स्वरुप एवं राजचन्द्रजी-भगवान महावीर दोनों के समान अंतस्-स्वरूप का उन्होंने हमें जो दर्शन कराया है वह अद्भुत है। उन्होंने अत्यंत ही सरल रूप से समझा दिया, प्रतीत करवा दिया कि श्रीमद्जी को समझना, भगवान महावीर को समझना और उन्हें आत्मसात् करना है - उन्हें अंतर्दशन में धारण करना याने अपनी आत्मा को ही समझना और पाना है।
महावीर के इस 'जिन-दर्शन' में उन्होंने बतला दिया अपनी आत्मा का ही दर्शन-निज-दर्शन। आत्मलक्ष्यधारा-प्रतीतिधारा-अनुभूतिधारा के द्वारा उन्होंने "ध्यानलीन" - सतत सर्वत्र आत्मध्यानलीन ऐसा 'महावीर दर्शन' करा दिया । 'महावीर दर्शन' अर्थात् महावीर के अंतःस्वरूप, आत्मस्वरूप का दर्शन, उनकी अनंत महिमामयी भीतरी आत्मसंपदा का दर्शन । उसी में लीन हो जाने का उन्होंने हमें एक दिन एकान्त में, अपनी पाट पर से आदेश दिया था -
"एक स्वयं में स्थित हो जाइये । सब कुछ सध जायगा उससे ।" । -कितना सुंदर उनका यह आदेश-बोध था । कितना तादृश 'महावीर-दर्शन' का निष्कर्ष !!
सद्गुरु-संग का यह परम आलंबन हमें प्राप्त हुआ । कितना सुंदर हमारा यह सौभाग्य !! यही तो बना हमारे 'महावीर दर्शन' का परम-धन, परम आलंबन !! परिदर्शन : अंतर्लोक में ध्यान, बहिर्लोक में अप्रमत्त परिदर्शन
एक आत्म-दर्शन, आत्म-स्वयं-संस्थिति ही बना अब हमारा महावीर दर्शन । उसीका चला परिदर्शन । अंतस् सृष्टि में उसीका ध्यान और बहिसृष्टि में - व्यवहार कार्य में उसका प्रतिफलन। इस तथ्य की ही प्रतीति, पुष्टि और प्रेरणा देता हुआ एक संदेश हमें मिला ।
महावीर जयंती का वह मधुर मंगल प्रभात था। प्रातः ध्यान पश्चात् अचानक, अप्रत्याशित रूप से माउन्ट आबु से कॉल आया । रिसिवर उठाते ही एक प्रबल, प्रांजल, परिचित आवाज़ सुनाई दी
"वीतराग महावीर का दिल में ध्यान लगाइए।
कषाय-मुक्त मुक्तिपंथ पर कदम बढ़ाते जाइए।" झकझोर देनेवाली यह प्रेरक आवाज़ थी - "श्रीमद्जी में पलभर का भी प्रमाद नहीं और रत्तीभर का असत्य नहीं" ऐसा 'अप्रमादयोग' का दर्शन करने-करानेवाली, सदा-सतत घ्यानलीन विदुषी दीदी विमलाजी की।
उनकी इस प्रेरक आवाज़ में "युक्ति थी कषाय-मुक्ति की" जो कि महावीर को अंतस में ध्यान लगाने के उपाय से सहज में ही सिद्ध करनी सम्भव थी।
सहजानंदघनजी एवं विमलाजी - दोनों गुरुजनों की अंतर्लोक में ध्यान की और बहिर्लोक में उसके प्रतिफलन की यह प्रक्रिया फिर एक कुंजी-सी बनकर अंधकार-अज्ञानांधकार से अवरुद्ध