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3rd Proof Dt. 19-7-2018 - 62
• महासैनिक •
उसका प्रचार बापूने स्वयं के जीवन से प्रारम्भ किया था। पंद्रह दिनों के हमारे कुमारावस्था के उनकी अल्प-सी सेवा की अवधि में यह हम दोनों स्वयंसेवक मित्रों ने अपनी आँखों से देखा था - प्रातः काल से रात तक की उनकी समग्र दिनचर्या में। चार बजे उठते, प्रार्थनारत होते, चरखा कांतने आदि उनके मौनमय रामनाम-साधन के पश्चात् सूर्योदय पूर्व के मिट्टी पट्टी के लेप के बाद वे बैठ जाते. थे, या कभी कभी घूम लेते थे सूर्यदर्शन-सूर्यस्नान करते हुए । रक्तरंगी अरुणिमा युक्त उस सूर्य के प्रथम किरणों के बीच पूज्य बापू का वह ध्यानमय सूर्यदर्शन कितना सुंदर लगता था ! स्वयं बापू ने ही उस दर्शन से अभिभूत होकर लिखा है
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"सूर्योदय दर्शन में जो सौंदर्य रहा हुआ है, जो नाटक रहा हुआ है, वह अन्यत्र कहीं भी देखने को नहीं मिलेगा ।" ('मंगल प्रभात')
बापू की इस निसर्ग-निष्ठा एवं निसर्गोपचार निष्ठा में उनकी रामनाम-प्रभुस्मरण की साधना भी छिपी हुई थी और निसर्गोपचार विषय पर लिखित अॅडोल्क जुस्ट के 'Return to Nature' (कुदरतमय जीवन ) जैसे कई प्रभावित करनेवाले पुस्तकों का अध्ययन भी ।
इन सभी का ही परिणाम था उनका इस डा. दिनशा मेहता के निसर्गोपचार केन्द्र पर राष्ट्रीय गतिविधियों को लेकर भी, ठहरना । तब हम यह सारा अपनी आँखों से दंग होकर देख और सोच रहे थे, जिसका कि हमारे अपने ही भावी जीवन में गहरा प्रभाव पड़नेवाला था हम भी बापू की निसर्गनिष्ठा को देखते देखते निसर्ग उपासक होनेवाले थे । अस्तु ।
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निसर्गोपचार-निष्ठा
तब, शायद जनवरी 1946 के आरम्भ में, बापू डा. दिनशा महेता के साथ वायु-प - परिवर्तन हेतु, पूना से निकटस्थ तीसरे रेल्वेस्टेशन ऐसे 'उरुली कांचन' गये। वहाँ की जलवायु उन्हें बड़ी अच्छी प्रतीत हुई और उन्होंने वहाँ पर भी 'निसर्गोपचार आश्रम, दरिद्र दर्दियों की प्रथम सेवा हेतु स्थापित करने की इच्छा व्यक्त की । तत्पश्चात् वह शीघ्र कार्यान्वित हुई और अप्रैल (शायद 22-23 तारीख को) वहाँ यह आश्रम सुस्थापित भी हो गया। उसे विनोबाजी के साधक लघु बंधु श्री बालकोबाजी आजीवन न केवल सम्हाला, पर अपने तीसरे स्टेज के टी.बी. को भी सूर्यस्नान द्वारा संपूर्ण निर्मूल किया । बापू की निसर्गोपचार-निष्ठा का यह एक ज्वलंत प्रभावक दृष्टांत बना ।
तब बापू एक ओर से उरुलीकांचन के इस निसर्गोपचार आश्रम के प्रेरक-स्थापक बने (जिसे बाद में श्री मोरारजीभाई देसाई ने भी अध्यक्ष रूप में अधिष्ठित किया) और दूसरी ओर से डा. दिनशा महेता के पूना के इस Nature Cure Clinic के, दरिद्र दर्दियों को सेवा हेतू 'ट्रस्टी' भी बने । उन्होंने स्वयं इस बात को ज़ोर देकर "दीनों का निसर्गोपचार, 'दिनशा' के स्थान से ही अभिवृद्धि कर, बढ़ाया :
"पाठक जानते हैं कि मैं, डो. दिनशा महेता और श्री जहांगीर पटेल के साथ उनके पूना स्थित चिकित्सालय में ट्रस्टी बना हूँ। इस वर्ष १ जनवरी से ट्रस्ट की एक शर्त है कि चिकित्सालय धनिकों के स्थान पर दरिद्रजनों के लिये चलाना होगा। विचार मेरा था, परंतु में प्रवास में रहने से मेरी गैरहाज़िरी
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