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________________ Dt. 19-07-2018 - 4 40 प्र.: मैं पिछले जन्म में कौन था? हुए उत्तर : पिछले जन्म में आप योगभ्रष्ट हिन्दु योगी थे। योग की साधना करते करते आप भ्रष्ट थे । भ्रष्ट होने के बाद आप जैन साधुओं के सम्पर्क में आये और इसी कारण से इस जन्म में आपका जैन कुल में जन्म हुआ । प्र. : मैं योगभ्रष्ट क्यों और कैसे हुआ ? कीर्ति-स्मृति उत्तर : कोई कोई मनुष्य अनेक जन्मों में योग की साधना कर के एक अन्तिम क्षण पर योगभ्रष्ट होता है और कोई सम्पूर्ण जीवन व्यर्थ गँवा कर भी अन्तिम क्षण पर जीवन सफल बना लेता है.... अतः आप स्वयं पर संयम रखें । योग के लिए बहुत थोड़ा ही समय है । प्र. : मुझे संयम की साधना किस प्रकार करनी चाहिए ? उत्तर : जैनों का मांर्ग योग... आप जैन हैं। किसी तीर्थंकर के जीवन चरित्र पर दृष्टि डालें । प्र. : मेरी विद्या साधना सुंदर ढंग से क्यों नहीं हो रही है ? उत्तर : आपका मन चंचल है। आप चाहते हैं कुछ और उस समय आपको करना पड़ता है कुछ और आप स्थिरतापूर्वक, ईश्वर पर श्रद्धा रखकर प्रतिदिन नवकारमन्त्र की नौ माला फेर कर काम आरम्भ करें। आप में विद्या अच्छी है । 1 प्र.: दीपावली से मैं स्थिरतापूर्वक विद्यासाधना करना चाहता हूँ जो काम हाथ पर लिया है उसमें पूर्ण सफलता प्राप्त करना चाहता हूँ, उसके लिए परिश्रम करने का स्पष्ट मार्ग बतायेंगे ? उत्तर : इसके लिए भगवान ने (देव ने ) सरस्वती का मन्त्र दिया है - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वद् वद् वाग्वादिनी स्वाहा' इस मन्त्र का जाप, शुद्ध वस्त्र पहन कर, अपने आसपास एक वर्तुल बनाकर, नवकार मन्त्र की नव माला फेर कर, बाद में करें। इसके बाद शांतचित्त से एक एक विषय का अभ्यास करें। वैसे तो सरस्वती देवी का जाप एक लाख इक्कीस हजार बार करना चाहिए। परन्तु आपसे यह पूर्ण हो नहीं सकेगा, इसलिए रोज एक माला फेर कर अभ्यास करें। प्रथम नवकार की नव माला और बाद में यह माला, फिर उसी आसन पर बैठ कर अभ्यास प्रतिदिन इतना करें । अन्य कार्यों के बहाने माला न चूकें। विद्याप्राप्ति हेतु सरस्वती का यह जाप आपको सहायता करेगा, नवकार के जाप से विघ्न दूर होंगे और आप स्थिरतापूर्वक अभ्यास कर सकेंगे। सफलता की प्राप्ति हेतु तो जितना परिश्रम करेंगे वैसा परिणाम होगा। 'कर्मानुसार गति प्राप्त होती ही है' ऐसा जैन शास्त्र ही कहते हैं। " (40) भविष्य में आपको विदेश जर्मनी जाना होगा... (देव कहते हैं कि) जर्मनी जायें तो धर्म को • जैन धर्म को छोड़कर माँसाहारी न बनें, मदिरापान न करें एवं धर्मविरुद्ध कोई कार्य न करें ....
SR No.032327
Book TitleKarunatma Krantikar Kirti Kumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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