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Dt. 19-07-2018
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• कीर्ति स्मृति •
भरा प्रारम्भ हो गया । मनीराम का उदार दिल का दान, प्रथम भूमिदान बाद विनोबा को देनेवाले रामचंद्र रेड्डी की थोड़ी सी स्मृति दिलाने लगा । यह तो अभी एक छोटे से छोटा, परंतु ठोस आरम्भ था। अभी तो उसे अनेक बड़ी बड़ी ऊंचाइयाँ प्राप्त करनी थीं।
इस क्रान्ति मिशन में अनेक अन्य आयाम और कार्यक्षेत्र थे। इन में घूसखोर बाबुओं और उनके आश्रयदाता मिनिस्टरों से, फिर रिश्वत विरोधी सरकारी विभागों के कर्मचारी ही से और बाद में रात्री के अंधेरे आलम के, बालाओं के लहू के पिशाची व्यापारी गुंडों से लोहा लेना, जंग छेड़ना, आदि शामिल था । ये सारे बड़े किमती और जोखिम भरे क्रान्ति काम मांगते थे अर्थशक्ति (Money power) और मानवशक्ति (Man-power), जो दोनों ही कीर्ति की टीम के पास बहुत ही मर्यादित थे । परंतु उनके पास जो भी थोड़े संसाधन थे वे अपनी फैक्ट्री के काली मेहनत मजदूरी की छोटीसी आय आदि के, वे सारे दुर्लभ थे और सदाकाल के संनिष्ठ क्रान्ति-साधकों के लिये दिशा दर्शक समान थे। अपनी ही मेहनत के, नेकीभरी मेहनत के, और बिना भीख या बिना दान के चलनेवाले कीर्ति के क्रान्ति कार्य अब धीरे धीरे रंग ला रहे थे मनीराम जैसे परिवर्तित बाहुबली अब उदार दिल दाता और अहिंसक वीर योद्धा बनकर उभर रहे थे और कीर्ति के क्रान्ति कार्य में नींव के पत्थर बनने जा रहे थे । इस उपक्रम में घटी हुईं अनेक जोखिमभरी क्रान्तिमिशन की घटनाओं में से एक दो उल्लेख करने योग्य हैं।
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कीर्ति ने अपने लिये अपना बदला हुआ नाम 'क्रान्तिकुमार' रखा था। 'क्रान्ति काठियावाड़ी' के नाम से भी वह अपने छोटे गुप्त, भूगर्भ वर्तुलों में जाना जाता था । कभी कभी गुंडे लोग भी उसका यह गुप्त नाम जान लेते थे और कीर्ति की समर्पित, सिध्धांतनिष्ठ, नेकी भरी चुनी हुई तालीमबद्ध क्रान्ति टीम से डरे हुए रहते थे। पूर्व सूचनानुसार कीर्ति की यह टीम चुने हुए, तालीमप्राप्त, चकासे गये थोड़े संनिष्ठ समर्पित फैक्ट्री-कामगारों और अन्य साथियों से बनी हुई थी। टीम को शुरु में कोई नाम नहीं दिया गया था, परंतु इस क्रान्ति टीम के साथियों ने कीर्ति को ऊपर कहे नामों से बढ़कर "सरदार" का नाम दिया था, जो कि हकीकत में अपने पहले क्रान्ति गुरु निर्माता सरदार पृथ्वीसिंह (स्वामीराव), शहीद वीर भगतसिंह के पूर्वकथित अनुयायी के ही कदमों पर चल रहा था । शुरू से ही बड़े ही समर्थ और मज़बूत बने हुए इस छोटे से क्रान्तिदल ने ऐसी धाक कलकत्ते के अंधेरे आलम में जमाये रखी थी कि बड़े बड़े गुंडे भी उससे डरते थे । "सरदार" अथवा "कीर्ति" । क्रान्ति काठियावाड़ी" का नाम ही उनके भाग जाने के लिये काफ़ी था ।
बहुत बार कीर्ति के उपर्युक्त चुनंदा समर्पित क्रान्तिसाथी, गुनाहित प्रवृत्तियाँ करनेवालों को देर रात तक घूमकर पकड़ते या भगा देते थे। इनमें असामाजिक तत्त्व, स्मगलर, कालेबाज़ारी, लहू के व्यापारी आदि सभी लोग होते थे। पुलीस उन तक पहुँचे या न पहुंचे, यह टीम, कभी तो अपने "सरदार" कीर्ति को अपने कंधों पर पालखी वत् उठाकर हावड़ा के बड़ा बाज़ार की छोटी छोटी सेंकरी गलियों में और लहू का व्यापार करने वाले 'रेड लाइट एरिया तक पहुँच जाती थी। उपरोक्त अपराधी लोग 'कीर्ति काठियावाडी' के लोगों के आने की भनक पड़ते ही अपनी
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