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Second Proof_Dt. 16-7-2018-3
॥ ॐ ऐं नमः ॥ वीतरागाय नमः ॥
॥ प्रशान्त शान्त क्रान्त आत्मने, परमात्मने नमः ॥
करुणात्म क्रान्तिकार कीर्तिकुमार टोलिया एक करुणात्मा क्रान्तिकार की
करुण कथा
( देह जन्म : 5/4-3-1933 : अमरेली)
( देह त्याग : 5-11-1959 : हैद्राबाद ) ( अमरेली- सथरा लींबड़ी उरुलीकांचन- पूना मद्रास कलकत्ता- हैद्राबाद- आंध्रप्रदेश)
"दया, शांति, समता, क्षमा, सत्य, त्याग, वैराग्य ।
होय मुमुक्षु हृदय में, साधक दशा सुजाग्य ॥' ( - श्री आत्मसिद्धि शास्त्र - १३८ )
प्राक्कथन
सांप्रत वर्तमान देश काल के भ्रष्टाचार के बीच घटित यह एक करुण हृदय युवा क्रान्तिकार की अनूठी क्रान्तिकथा है जो पुरुषार्थ तो अपार कर चुका, परंतु अपने सपनों को सपने ही छोड़कर असमय ही छब्बीस वर्ष की युवावस्था में चल बसा.....
सुस्पष्ट जीवनलक्ष्य, सुदृढ़ संकल्प, सतत संघर्षयुक्त स्वमानमय पुरुषार्थ और संनिष्ठ साधना की यह शब्दश: सत्यकथा मेरे अपने ही अनुज की है। उसके इस सत्यखोज और क्रान्तिमय जीवन का यह देहधारी साक्षी भी रहा है, महदेश में सहायक और कहीं कहीं पथदर्शक भी बंधु होने के कारण किंचित् अपनी कथा भी अनायास स्वभाविक ही इसमें जुड़ती चली है ।
कथा के पन्ने ही सब कुछ बोलेंगे ।
"
भले ही यह क्रान्तिकार अपने सपनों का, शहीदों के सपनों का भारत देख नहीं सका; परंतु अपनी क्रान्तिसाधना को इस काल में दुर्लभ, असम्भव-सी कठोर तपसाधना-पूर्णतः शुद्ध अहिंसासाधना के साथ भी जोड़ता गया और संसार से अमसय ही विदा हो गया; परंतु उसके लघुजीवन के अंतिम दिन और अंतिम क्षण अहिंसा संस्कार जनित संकल्प और विश्वकल्याणकर नमस्कार महामंत्र की सुदीर्घ श्रवण-धुन के बीच गुज़ार (बीता ) गया.... ज्ञानपंचमी के धन्य दिन ऐसे प्रयाण से पूर्व स्वजनों से यह संकल्प करवाकर कि 'अनजाने में भी मेरी देह में हिंसक औषध की एक बूंद भी जा नहीं पाये ऐसे अपनी कुछ बेहोशी पूर्व हृदयभावों के साथ ।
एक क्रान्तिकार, जो अपनी जीवनयात्रा में भ्रष्ट भारत की भीषण घटनाओं एवं खूंखार गुंडों से एक अबला कुमारिका की रक्षा जैसे प्रसंगों में हिंसक शस्त्र उठाने से भी नहीं हिचका, वह अपने जीवन में तो आद्यान्त अणीशुद्ध अहिंसक बना रहा। इतना ही नहीं, अपने सबसे निराले ऐसे स्वतंत्र,