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Dt. 19-07-2018 - 15
है। मुक्त भारत को 'भ्रष्टाचार मुक्त भारत' बनाने उसके स्वयं के द्वारा छोटे स्तर पर भी किये गये पुरुषार्थों का उसमें चित्रण है ।
• कीर्ति स्मृति
कीर्ति के इन क्रान्ति-अभिगमों और पुरुषार्थों का मैं बचपन से ही कुछ साक्षी, अनुमोदक और पुरस्कर्ता रहा हूँ । मुझ से कहीं अधिक उसे अपने जीवन-निर्माता एवं जीवन त्राता ऐसे सरदार पृथ्वीसिंह, बालकोबाजी एवं करुणा-प्रेम के अवतार आचार्य गुरुदयाल - मल्लिकजी से ऊर्ध्वगगन में उड़ान मिली है ! जीवनभर के करुणा-कार्यों के बिना ऐसा संत-कृपानुग्रह किसे मिल सकता है ? कीर्ति के छोटेसे फिर भी सतत निरंतर अप्रमादपूर्ण कार्य रत जीवन में यह अनुग्रह सर्वाधिक रूप से, उसके प्रति अविराम बहती करुणाधारा के रूप में बहता हुआ, उसे उसमें भिगाता हुआ, जीवनांत के चार महीनों में प्राप्त होता रहा इस करुणा प्रेमावतार रहस्यवादी "चाचाजी" गुरुदयाल मल्लिकजी से ! कीर्ति का रक्षण संरक्षण एवं ऊर्ध्वगमन प्रत्यक्ष एवं परोक्षरूप से मल्लिकजी के अदृश्य हाथ और हृदय द्वारा जो होता रहा है, हुआ है, वह इस वर्तमानकाल की एक असंभव-सी, आश्चर्यपूर्ण, अभूतपूर्व घटना है !! कीर्ति के करुणाभरे क्रान्तिकार्यों का प्रत्यक्ष परिणाम दर्शाने वाली, उन्हें प्रमाणित करनेवाली मानों एक मुहर है।
परंतु इन सारी अलौकिक सत्य घटनाओं के विषय में तो सब कुछ इस कथा के अन्त में । पूर्व उसके हम पायेंगे एक झलक, एक झाँकी इस युवा क्रान्तिकार के, दीन-हीनों के उत्थान एवं नूतन क्रान्ति के निर्माण से पूर्ण जीवन की ।
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यहाँ कथित, कलकत्ता के जीवन के उसके प्रारंभिक कठोर अनुभवों के बाद की कथा की कडियों को जोड़ने से पूर्व उसके जीवन की दो घटनाओं को जोड़ना समीचीन होगा - उल्लेख रूप में एक में सचरा के शिविर के पूर्व अपने क्रान्ति कार्य की खोज की धून में अपने आदर्शरूप शहीदों - भगतसिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद आदि के पद चिह्नों पर वह घर से पलायन कर गया था - अंग पर केवल दो वस्त्रों के साथ और जूते-चप्पल भी छोड़कर, खुले पांव ! तब उसे प्रथम मिलिट्री में दाखिल होना था, जो कि परिवार को स्वीकार्य नहीं था और प्रथम परीक्षा में मिलिट्री अफसरो द्वारा भी कुछ बातों में न्यून पाया गया था। फिर उसे स्थान स्थान पर भ्रष्ट रिश्वतखोर अफसरों के विरुद्ध विद्रोह जगाना था सब कुछ शुरु शुरु में अकेले ही ! 'एकला चलो रे' गानेवाला वह सदा कहता रहता कि शेर तो अकेला ही घूमता है !! इस क्रान्ति की अकेली यात्रा में, भ्रष्ट अधिकारियों का भंडा फोड़ करने की अपनी मुहिम में, उन भ्रष्टसत्ताधीशों द्वारा झूठे इल्ज़ाम उल्टे अपने पर पाकर वह राजस्थान के भरतपुर में पकड़ा भी गया था और बर्फ की शीत शिलाओं पर सजा के रूप में सुलाया भी गया था । परंतु अविचल और सत्यवान कीर्ति आखिर इस उपसर्ग-कष्ट से निर्दोष मुक्त किया गया था ।
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