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कीर्ति-स्मति .
Dt. 19-07-2018 - 12
उसके द्वारा रात के अंधेरे के काले बाज़ार में छोटे उदानीने अपने कॉन्ट्रेक्ट कार्य में मिलिट्री एन्जीनीयरींग सर्विस (MES) से चुराये हुए इलैक्ट्रीक वायरों को चुपचाप बिकवाते रहने का भ्रष्टाचारी दुष्ट आयोजन कर रखा था ! फिर अनपढ़ गरीब मजदूरों को एक रुपया मज़दूरी चुकाकर बीस रुपये के रसीद-वाउचर पर नये "सुपरवाईजर" के द्वारा अंगुठा लगवाना चाहा था - एक दो नहीं, सैंकड़ों मजदूरों के पास से !! क्या कीर्ति जैसा विद्रोही और नेक क्रान्तिकार युवक कभी भी ऐसे कार्यों में सम्मत हो सकता था ? प्रथम दो दिनों में ही अपने पूंजीपति भ्रष्ट शोषक - 'स्वजन'(?) जीजा-बंधु के ऐसे कुचक्रों का पता लगते ही कीर्ति के भीतर-बैठा हुआ देशभक्त विद्रोही सुलग उठा । उसने न केवल मुँहतोड़ विरोध किया इस भ्रष्ट 'स्वजन' (!) का, अपितु पुलिस शिकायत भी कर दी ! परन्तु भ्रष्ट पूंजीपति से माल खाई हुई भ्रष्टाचारी पुलिस उसके विरुद्ध क्या करनेवाली थी? मद्रास की पुलिस की इस मिलीभगत एवं निष्क्रीयता से क्रान्तिकार कीर्ति आगबबूला हो गया। उसका हिंसक विद्रोही भीतर से जाग उठ खड़ा हुआ..... ऐसे देशद्रोही, बेईमान, शोषक, भ्रष्टाचारी 'स्वजन' (!) का खून भी कर डालने में उसे कोई पाप नहीं दिखाई दिया.... उसने अपनी यह मन्शा मद्रास रहे अग्रज से एवं माँ से भी छिपाई नहीं । चिंतित होकर उन्होंने विनोबा यात्राओं में घूम रहे मुझको किसी तरह टेलिग्रामों और एक्सप्रेस पत्रों से सारे समाचार पहुंचाये । कीर्ति ने भी अपनी अंतर्व्यथा किसी प्रकार मुझे पहुंचायी । साथ में उसने यह भी पूछवाया कि क्या वह कलकत्ता चला जा सकता है और वहाँ रह रहे मेरे समर्पित संनिष्ठ मित्र मनुभाई उसके धन कमाने के कार्य और स्वतंत्र क्रान्ति-कार्य की भूमिका बनवाने में उपयोगी हो सकते हैं ?
सारी परिस्थिति का दूर से दीर्घचिंतन कर, उस समय उसे कलकत्ता जाने देना ही मैंने उचित समझा । कलकत्ता के मित्र को शीघ्र सूचना दी । कीर्ति को मद्रास में भ्रष्ट स्वजन के प्रति भी हिंसक कदम उठाने से मैंने रोका और उसे तुरन्त कलकत्ता चले जाने की अनुमति दी । कलकत्ते के बड़े ही उदारहृदय मित्र मनुभाई ने शीघ्र ही कीर्ति हेतु सहर्ष सारी पूर्वव्यवस्था की, उसे मद्रास टेलिग्राम भेजकर निमंत्रण दिया और कीर्ति जल्दी ही उनके पास कलकत्ता पहुँच गया । ___ इस प्रकार मद्रास की चुनौतीभरी प्रत्यक्ष घटना ने कीर्ति की हृदयस्थ क्रान्ति-भावना को और बढ़ाकर बल दिया और देशभक्त बंगाली क्रान्तिकारों की क्रान्ति-नगरी कलकत्ता में जाकर अपने क्रान्ति कार्य को साकार करने का सहज अनायास ही निमित्त बन गया । उसका लक्ष्य था प्रथम स्वयं धनार्जन करना और फिर क्रान्तिकार्य । - इस समय हैदराबाद आ कर मुझे अपनी प्रामाणिक व्यवसाय व्यवहार एवं अध्ययन-स्वातंत्र्य की शर्तों के साथ पूर्वायोजित उदानी एन्जीनीयरींग कंपनी में अग्रज चंदुभाई एवं बहन शांताबेन उदानी के साथ भागीदार के रूप में सावधानीपूर्वक जुड़ना था। ये सारी औपचारिकताएँ संपन्न कर कीर्ति के पास कलकत्ता जाने का, उसका नूतन क्रान्ति-कार्य आरम्भ होने से पूर्व उसे दीर्घ-लंबित विनोबाजी
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