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इस प्रकार एक आय के अभाव में दूसरा आय ऊपर दी गई समझ के अनुसार दिया जा सकता है। परंतु वृष आय के स्थान पर वृष आय ही देना चाहिए, अन्य किसी आय के स्थान में वृष आय दिया जा नहीं सकता। किस किस स्थान में कौन-कौन सा आय देना
ब्राह्मण के घर में ध्वज आय, क्षत्रिय के घर में सिंह आय, वैश्य के घर में वृष आय, शूद्र के घर में गज आय और मुनि (संन्यासी) के आश्रम में ध्वांक्ष आय दिया जाना चाहिए।
ध्वज, गज और सिंह ये तीन आय उत्तम स्थान में, ध्वज आय सर्व स्थानों में, गज सिंह और वृष आय येतीन आय नगर, गाँव, किले आदि स्थानों में दिये जाने चाहिए।
बाव, कुआँ, तालाब और शय्या (पलंग आदि) इन स्थानों में गज आय देना श्रेष्ठ है सिंहासन आदि आसनों में सिंह आय श्रेष्ठ है। भोजन के पात्रों में वृष आय श्रेष्ठ है। छत्र चामर आदि में ध्वज आय श्रेष्ठ है।
वृष गज और सिंह ये तीन आय नगर प्रासाद (राजमहल या देवमंदिर) और प्रत्येक घर इन स्थानों में देना चाहिए। श्वान आय म्लेच्छ आदि के घरों में तथा ध्वांक्ष आय सन्यासियों के मठ, उपाश्रय आदि स्थानों में देना चाहिए।
रसोईघर तथा अग्नि के द्वारा आजीविका चलानेवालों के घरों में धम्र आय दिया जाना चाहिए। वेश्या के घर में खर तथा राजमहल में ध्वज,गज तथा सिंह आयदें। घर के नक्षत्रों की समझ
घर बनाने की भूमि की लंबाई-चौड़ाईका गुणन करें।जोगुणनफल मिले वह घर का क्षेत्रफल है। क्षेत्रफल को आठ से गुणित करके सताईस से विभाजित करें। जोशेष बचे वह घर का नक्षत्र है। घर की राशि की समझ
घर के नक्षत्र को चार से गुणित कर नव से विभाजित करने पर जो लब्धि मिले उसे घर की भुक्त राशि समझें। यह घर की राशि तथा गृहस्वामी की राशि परस्पर छठी और आठवीं अथवा दूसरी और बारहवीं हो तोअशुभ समझें। वास्तुशास्त्र में राशि का ज्ञान इस प्रकार दिया गया है।
अश्विनी आदि तीन नक्षत्र मेष राशि के, मघा आदि तीन नक्षत्र सिंह राशि के और मूल आदि तीन नक्षत्र धन राशि के हैं। बाकी की नव राशियों के दो दो नक्षत्र हैं। वास्तुशास्त्र में नक्षत्र में चरण भेद के द्वारा राशि मानी नहीं गई है। विशेष स्पष्टता के लिये नीचे दिये गये गृहराशियंत्र में देखें:- ......
जैन वास्तुसार