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वर्तमान वास्तुविद् श्री गौरू तिरूपति रेड्डी लिखित
चुनी हुई चंद वास्तु सूक्तियाँ
(इन का विशिष्ट स्पष्टीकरण प्रत्यक्ष में प्राप्तव्य)
* स्थल-शुद्धि तो पहले कर लो, मनमाना घर बाद बना लो। * चार दिवारी प्रथम बनाओ, रक्षक होगी, उसे अपना लो। * करो शुरु ईशान खुदाई, वही वेगवत् घर को बनवाई। * नैऋत्य में प्रथम नींव बनाओ, नवनिधियों की आरती उतारो। * पूरब में जो होवे द्वार, शुभ-शुभ बजे जीवन तार। * पूर्व-आग्नेय का जो हो द्वार, चोराग्नि, स्त्री-पीड़ा की मार। * दक्षिण-आग्नेय में जो हो द्वार, नारी जन को करे उपकार। * दक्षिण-नैऋत्य में जो हो द्वार, नारी सुख पर करे प्रहार। * उत्तर में जो होद्वार, प्रगतिपूर्ण रत्नों का हार। * उत्तर-ईशान को हो जो द्वार, धनदायक, स्त्री सौभाग्य विहार। * पश्चिम में हो जो एक द्वार, गृह सुख-क्षेम भरे फुल्वार।
("वास्तु-सूक्तियाँ" से साभार उघृत)
जैन दस्तुिसार
जन-जन का 15वा