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ग्रंथोपकार :
__ इन सभी के मूल में रहे हुए इस ग्रंथ का इतना उपकार और प्रभाव हम पर रहा कि इस विषय में हम दिनों-दिन गहरे उतरते गये, विद्वान् प्रोफेसर डॉ. जितेन भट्ट जैसे पिरामिड-वास्तुविदों के भी परिचय में हम आये और जब हमारे उपर्युक्त "अनंत" बिल्डिंग निवास का इच्छित वास्तुपरिवर्तन सम्भव न होकर लटकता रहा तब हमने अपना निवास ही वहाँ से इस कुछ अधिक वास्तु-अनुकूल भवन (“पारुल") में बदल दिया।
यह सारा स्वानुभव हम इस लिये यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं कि यह ग्रंथ हमें वास्तुदोषों-जनित गृहकष्टों के निवारण में प्रायोगिक रुप से कितना निमित्त रुप बना है
और प्राचीन वास्तु की वास्तविकता कितनी वैज्ञानिक एवं सर्वकालीन-सर्वदेशीय है यह सिद्ध हो सकें। इस के अध्ययन से हमें जो लाभ प्राप्त हो रहा है वह सारे जग-जन को भी वास्तु-दोष निवारण से हो यह हमारी मंगल भावना रही है। अतः हमारे स्वानुभव एवं गुरुजन-ज्ञान से प्रमाणित इस उपकारक वास्तु-ग्रंथ को सार रूप में कई समय से प्रकाशित करने की हमारी जो भावना थी वह अब गुरुकृपा से साकार होने जा रही है। यहाँ पर इस ग्रंथ को आधारभूत बनाकर, अन्य अध्ययनों को भी साथ में जोड़ते हुए सार रूप में, जन-सामान्य के भी निजी उपयोग-मार्गदर्शन हेतु हम प्रस्तुत कर रहे हैं - इसमें प्रधान ग्रंथ का अनुवाद ही नहीं, यथास्थान में सार-संकलन और संक्षेपीकरण करते हुए सुस्पष्ट सम्पादन का हमने प्रयास किया है। यथासम्भव सरल, आधुनिक रुप में देने के हमारे इस प्रयास में मूल सिद्धांतों को तो हमने यथावत् ही रखा है। ग्रंथ में सर्वजनोपयोगी गृहादि वास्तु, प्रतिमा पूजकों के लिये प्रतिमा-मान और महिमा और जिनालयों-जिनप्रासादों के निर्माता धन्यभाग्य महानुभावों के लिये संपूर्ण शिल्पवास्तु-विज्ञान प्रस्तुत किया गया है। आशा है, यह सभी को उपयोगी, उपकारक, उपादेय सिद्ध होगा। हमारी यह विनम्र भावना है कि प्रत्येक जन को किसी-न-किसी रुप में इसमें से कोई न कोई बात उपादेय - अपनाने योग्य प्रतीत नहीं हुई, तो हम हमारा सृजन-श्रम निष्फल, निरर्थक समझेंगे। परन्तु इससे विपरीत हमें पूर्ण श्रद्धा है इस श्रम के सर्वजनोपयोगी बनने की। हमारे प्राचीन-अर्वाचीन दोनों मार्गदर्शक पू.आ.श्री जयंतसेनसूरीश्वरजी एवं वास्तुविद् श्री गौरु तिरुपति रेड्डीजी हमें आशीर्वाद प्रदान ही नहीं, हमसे वर्षों से आशा-अपेक्षा भी रखे हुए हैं कि इस ग्रंथ को हम शीघ्र प्रकाशित करें। विशेषकर इस परिस्थिति में जब स्व. ठक्कर फॅरू रचित पूर्वोक्त मूल ग्रंथ "वास्तु प्रकरण सार" अभी उपलब्ध नहीं है और उसका इन्हीं वास्तु शिल्पज्ञ आचार्यश्री द्वारा संपादित नूतन संस्करण भी अभी उपलब्ध नहीं है । अत: इसी का पूरा आधार लेकर निर्मित किये गये इस अभिनव स्वरूप के हिन्दी अनुवाद एवं सम्पादन के प्रकाशन की
जैन वास्तुसार
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