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प्रासाद के विस्तार से जगती तीन गुनी, चार गुनी अथवा पांच गुनी करें। उन में तीन गुनी कनिष्ठमान की, चार गुनी मध्यम मान की और पांचगुनी ज्येष्ठ मान की जगतीजानें।
कनिष्ठमान के प्रासाद को कनिष्ठमान की जगती, ज्येष्ठमान के प्रासाद को ज्येष्ठमान की जगती और मध्यममान के प्रासाद को मध्यममान की जगती, प्रासाद के लक्षण जैसी बनायें।
च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल और मोक्ष के स्वरूपवाली देवकुलिकायुक्त जिन के प्रासाद को छह अथवा सात गुनी जगती करें। उसी प्रकार द्वारिका प्रासाद और त्रिपुरुष प्रासाद को जानें।
मंडपानुसार मंडप के विस्तार से सवा गुनी, डेढ़ गुनी अथवा दुगने विस्तार की जगती बनायें।
तीन भ्रम वाली ज्येष्ठा, दो भ्रमवाली मध्यमा और एक भ्रमवाली कनिष्ठा जगती जानें। जगती की ऊंचाई के तीन भाग करके उस प्रत्येक भाग जितनी भ्रमणी की ऊंचाई जानें। । चार कोने वाली, बारह कोने वाली, बीस कोने वाली, अट्ठाईस कोने वाली अथवा छत्तीस कोने वाली जगती बनायें। जगती की ऊंचाई
प्रासाद का विस्तार एक हाथ से बारह हाथ तक हो तो जगती की ऊंचाई प्रासाद से आधी रखें, अर्थात् प्रत्येक हाथ पर बारह बारह अंगुल बढ़ाकर करें। तेरह से बाईस हाथ के विस्तारवाले प्रासाद के तीसरे भाग से ऊंचाई करें। तैबीस से बत्तीस हाथ के विस्तारवाले प्रासाद को चौथे भाग से ऊंचाई करें। तैंतीस से पचास हाथ के विस्तारवाले प्रासाद को पांचवे भाग से जगती ऊंची करें। प्रकारान्तर से
एक हाथ के विस्तारवाले प्रासाद को एक हाथ की ऊंची जगती, दो से चार हाथ तक के प्रासाद को ढ़ाई (गुने) भाग की, पांच से बारह हाथ तक के प्रासाद को दूसरे भाग से, तेरह से चौबीस हाथ के प्रासाद को तीसरे भाग से और पचीस से पचास हाथ तक के प्रासाद कोचौथे भाग सेजगती की ऊंचाई करें। जगती की ऊंचाई के थर
जगती की ऊंचाई के अट्ठाईस भाग करें, उसमें तीन भाग का जाऽयकुंभ, दो भाग की कणी, पद्मपत्र सहित तीन भाग कीग्रासपट्टी, दो भाग का खुरो, सात भाग का कुंभ,
जन-जन का उ6वास्त
जैन वास्तुसार