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सर्वजग-कल्याणकारी शांति-संदेश, अपने मौन को मानों मुखरित कर, युगयुगों से देते आये हैं और देते रहेंगे।
जैन वास्तु-शिल्प का यह कोई कम चमत्कार है? कोई कम प्रभाव है? जिनालयों के वास्तु-विधान के समान ही जैन श्रावकों के गृहों-आवासों भवनों का भी अत्यन्त सुंदर विधान आज जैन सांस्कृतिक परम्परा के थोड़े से उपलब्ध जैन वास्तुग्रंथों में मौजूद है। दूरदर्शी जैनाचार्यों ने पूर्वोक्त चौदहपूर्व-निहित इस अतिगंभीर, महामूल्यवान विषय के ज्ञान को भी यथोपलब्ध, यत्किंचित् स्वरुप में तो सम्हाले हुए रखा है। इस विषय में अनुपलब्ध महदंश के ग्रंथों के बीच से भी कुछ थोड़े-से उपलब्ध ग्रंथ हैं, "श्री भगवती सूत्र" के कुछ अंश "सूत्रकृतांग का उपांग ऐसा "रायपसेणीय सूत्र" (राजप्रश्नीय सूत्र), "धर्मबिन्दु", "वास्तुप्रकरणसार", "आरम्भसिद्धि", "JainArt &Architecture" एवं अन्यअनेक।
_ जैनदर्शन की सर्वग्राही समग्रता, गहनता एवं स्याद्वादी-अनेकांतवादी भूमिका के कारण इन वास्तु-सम्बन्धित उल्लेखों से भरे उपर्युक्त एवं अन्य ग्रन्थों में निहित कुछ सामग्री वैदिक परम्परा के ग्रंथों से मौलिक-विशिष्ट है और कुछ विराट भारतीय संस्कृति की प्राकृतिक समानता के कारण एक-सी। इस तुलनायोग्य, संशोधनयोग्य पक्ष को यहाँ छोड़कर, उक्त उपलब्ध जैनग्रंथों की वास्तुशास्त्रीय उपयोगिता, जन-जन कीजनोपयोगिता के ऊपर हम आयेंगे। वास्तु की जन जन की जनोपयोगिता एवं वर्तमान वैज्ञानिकता
श्रावकों-गृहस्थों-आमजनों के निवास किस प्रकार निर्मित और प्रायोजित हों - जिससे कि उनकी जीवन साधना में - व्यावहारिक उपलब्धियां एवं पारमार्थिक विकास में सम्बल मिल सके - इस विषय में इन जैन ग्रंथों से बहुत उपयोगी मार्गदर्शन मिलता है और यह न तो वैदिक परम्परा के ग्रंथों के, न वर्तमान वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विरोध में है। "अविरोध" की, समन्वय की, स्याद्ववाद - अनेकांतवाद की यह भूमिका जैन परंपरा की विशिष्टता है, क्योंकि वह सारग्राही अनेकांतवाद की भूमिका पर खड़ा है। परन्तु अविरोध की सर्वसामान्य समानता के उपरान्त जैन परम्परा के ग्रंथों में अपनी सूक्ष्मता और सर्वांगीण समग्रता के कारण जो विशिष्ट मौलिकता रही है वह अद्भुत, दर्शनीय, मंगलकारी एवं सारे ही समाज के हित के लिये उपकारक एवं उपादेय है।
__ इस मौलिक भिन्नताभरी विशिष्टता का जब वर्तमान विद्वान् मनीषि, गीतार्थ आचार्य पूर्वोक्त इंगित के अनुसार तुलनात्मक, खुला, अध्ययन - संशोधन करेंगे तब विशाल जनसमाज एवं दुःखाक्रान्त जगत के लिये वह नये रुप में उपयोगी एवं उपकारक सिद्ध होगा। जगत को शांतिपथ, अहिंसा पथ, आत्मसाक्षात्कार का पथ
जैन वास्तुसार
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