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प्राक्कथन
पूर्वप्रज्ञाधारी, मेधाविनी दिवंगता कुमारी पारुल कर्मसत्ता की विधि की कैसी यह विचित्र विडंबना, आयोजना कि पुत्री बनकर हमारे जीवन में आई और पथप्रदर्शिका बनकर अल्पायु में ही चल बसी ।
प्रायः जाति-स्मृतिज्ञान तक पहुँचे हुए उसके इस अल्पजीवन की पावनस्मृतियाँ भी हमारे लिए चिर प्रेरणादायी बनीं हैंजिनमें से थोड़ी ही संग्रहीत हैं, सभी में बाँटने हेतु, यहाँ पर उसकी हमारी काव्यकृतियों में और उसकी जीवन झाँकी की पुस्तिका Profiles of Parul में। इस सन्दर्भ में वर्तमान गुजराती कवि-मनीषि श्री निरंजन भगत के शब्दों में इतना ही कहेंगे कि
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"काल के पथ पर अल्प है संग, बंधु ! हमारा स्वल्प है संग | फिर भी अंतस् पर छा जाएगा उसका जनम जनम तक रंग ।।"
पारुल के इस चिरंतन आतम रंग के विषय में, वाणी के वैखरी - मध्यमा पश्यन्ति के पार के परालोक से इंगित उसकी इन कृतियों के द्वारा कुछ संकेत प्राप्त होते हैं। ये प्रस्तुत किए हैं डा. श्रीमती गीता परीख एवं डा. वीरेन्द्रकुमार जैन ने अपने पुरोवचन एवं कृतित्व मूल्यांकन में । अन्यत्र विदुषी सुश्री विमला ठकार, पंडित रविशंकर, श्री कांतिलाल परीख, डा. रमणलाल जोशी, श्री श्रीकांत पाराशर आदि ने भी ये व्यक्त किए हैं। इन सभी का हार्दिक अनुग्रह - ज्ञापन करते हुए, मुद्रक मित्रों को भी धन्यवाद देते हुए अर्पित हैं ये चंद कृतियाँ- स्मृतियाँ आप सर्व पाठकों-भावकों के हाथों में ।
बेंगलोर
प्रा. प्रतापकुमार टोलिया - सुमित्रा प्र. टोलिया
पारुल-कृतित्व मूल्यांकन
कुछ व्यक्ति जन्मजात विलक्षण प्रतिभासम्पन्न होते हैं, कुछ निरन्तर अध्ययन एवं अध्यवसाय के द्वारा प्रतिभासंचय करते हैं, और कुछ अन्य अधिसंख्य व्यक्ति केवल सामान्य लाभ के ही धारक बने रह जाते हैं। विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति प्रायः अल्पजीवी देखे गए हैं । किन्तु अपने अल्पजीवन काल में वे दृष्टा और सृष्टा के रूप में क्षयधर्मी काल के अति गतिशील पटल पर अपने कृतित्व की ऐसी छाप छोड़ गए हैं जो व्यक्ति और समाज के लिए लाभदायक ही नहीं, अनुकरणीय भी बन गई। इस सन्दर्भ में अमेरिकन कवि रिचर्ड जेफरिस की एक कविता का हिन्दी रूपान्तर प्रस्तुत है :
जीवन की अनुपम आभा में धरती का अनोखा सौन्दर्य हर नई खिलने वाली पंखुड़ी के साथ एक नई कलाकृति प्रस्तुत करता है मनहर और अभूतपूर्व । जिन क्षणों में हमारा मन
प्रारूल-प्रसून
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