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श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, हम्पी, कर्नाटक की अधिष्ठात्री परमपूज्या आजन्मज्ञानी
आत्मदृष्टा माताजी . . . एक परिचय - झांकी
स्व. कु. पारुल टोलिया
एम.ए. गोल्ड मेडलिस्ट - सात एवार्ड प्राप्त जर्नलिस्ट
... रात्रि का घना अंधकार चारों ओर फैला हुआ है . . . सर्वत्र शान्ति छाई हुई है . . . नीरव, सुखमय शान्ति । इस अंधकार में प्रकाश देनेवाले तारे और धूमिल चन्द्रमा आकाश में मुस्कुरा रहे हैं। चारों ओर नज़र दौड़ाने पर दूर खड़े पर्वतों के आकार भर दिखाई देते हैं और कभी कभी छोटी बड़ी चट्टानें भी। ___ अपने आप में बन्द यह एक अलग ही दुनिया है । ऐसी दुनिया कि जहाँ कदम रखने पर मन में एक प्रकार की अपूर्व शान्ति दौड़ जाती है, ऐसी दुनिया कि जहाँ पहुँचने पर हम इस दुनिया को भूल जाते हैं, जहाँ इस जग के विलास, विडंबना, घमण्ड, क्रोध, मोह, माया, लोभ पहुँच नहीं पाते।
अगर आप को यहाँ आना है तो इन सब को घर में बन्द कर के आइए, क्योंकि आप यहाँ आते हैं भटकती - तड़पती हुई इस आत्मा को तृप्ति दिलाने, उसे दुर्लभ मानवजीवन का मूल्य समझाने, अपने आप को टटोलने और अन्दर' झाँकने - न कि अपने विषय-कषायों को बढ़ाने! ___ अनेक महापुरुषों की पद-रेणु से धूसरित यह स्थान है योग-भूमि हम्पी - 'सद्भक्त्या स्तोत्र' में उल्लिखित “कर्णाट रत्नकूटे भोटे च"वाला रत्नकूट - हेमकूट का कर्णाटक स्थित प्राचीन जैन तीर्थ एवं रामायण कालीन किष्किन्धा नगरी हम्पी - विजयनगर के समृद्ध साम्राज्य का भूला हुआ वह भू-भाग कि जहाँ यह नूतन जैन तीर्थरूपी आश्रम - श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम - प्राकृतिक गुफाओं में बसा है - शहरी ज़िन्दगी की अडचनों और विकृतियों से कोसों दूर!.. .यहाँ पर रेल, ट्रेन, मोटरगाड़ी या बस की आवाज़ तक पहुँच नहीं पाती !! ____ पहाड़ी पर स्थित इस तीर्थ-धाम के नीचे हरे लहलहाते खेत, दूसरी तरफ पर्वत एवं पर्वत के तले किलकिल बहती तीर्थसलिला तुंगभद्रा नदी और ऊपर आश्रम में बंधा हुआ सुन्दर गुफामन्दिर - इन्हें देखने भर से आप की बुराईयाँ न जाने कहाँ गायब हो जाती हैं, जैसे वे पहले कभी थीं ही नहीं!!! ..... यहाँ पर हर किसी का स्वागत होता है। हमारे समाज को छेदनेवाले ऊँच-नीच के
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पारुल-प्रसून