________________
और माता श्रीमती सुमित्रा टोलिया से विरासत में मिला था। संध्या का हूबहू चित्रण
घूमते बादल, उड़ते पंछी, खड़े पेड़।
भागता हुआ समय कहाँ ठहरता है वह? अतीत शैशव की स्मृतियाँ और वर्तमान के भाग रहे, बिछड़ते क्षण,
ऊपर से नहीं अंदर से बाहर से नहीं भीतर से पाई जाती है गरिमा और गंभीरता सागर की प्रेम के सागर की।
चाह, विलक्षण अनजान, अदृष्ट जब से वह भीतर पैठ गई है तबसे उसे समझते समझते खो दिया अपने आप को
अपने होश को .... कन्नड़ भाषा के मनीषी कवि दत्तात्रेय रामचंद्र बेन्द्रे ने कहा है -
दर्द जो मेरा है मुझको ही मुबारक हो गीत लो उसका मगर मैं तुम्हें देता हूँ दिल अगर मिश्री-सा तुम्हारा घुल जाए
तो स्वाद उसका थोड़ा सा मुझे दे देना। अपने एकाकीपन का दर्द लिए पारुल काल कवलित हो गई किन्तु दे गई, अपने दर्द की अनुभूति से पैदा ऐसी कालजयी कृतियाँ जिन्हें काल कवलित नहीं कर सकता।
- डॉ. वीरेन्द्र कुमार जैन बेंगलोर
।८
पारुल-प्रसून