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मूल प्रकाशक का निवेदन
मेरे परम सद्भाग्य से और श्रीमद् राजचन्द्र परम कृपालुदेव की ओर की भक्ति-श्रद्धा से मुझे प.पू. श्री सहजानंदघनस्वामीजी (भद्रमुनिजी) का सत्समागम प्राप्त हुआ। आपश्री की नि:शंकता, निर्भयता और वन प्रांतर एवं गुफाओं में साधना करने की शक्ति से मैं उनके प्रति आकर्षित हुआ और समागम करने लगा। मुख्यत: अहमदाबाद, अगास, वड़वा, इडर और बोरड़ी में मुझे समागम का लाभ मिला। आत्मभान सह वीतरागता समझाने की उनकी शक्ति अद्भुत है। प्राय: संवत् 2017 में श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, हम्पी की स्थापना हुई ऐसा ज्ञात हुआ और प.पू. श्री सहजानंदघनस्वामीजी वहीं गुफा में स्थिरता करेंगे यह भी ज्ञात हुआ और तत्पश्चात् मुझे हम्पी जाने का अवसर मिला। स्थान और चहुँ ओर की हरियाली नयनरम्य है, और उस पर भी ऐसे सत्संग का योग। इसलिए वर्ष में एकाध बार तो वह लाभ प्राप्त करने हेतु मैं हम्पी जाता हूँ। अब जब संवत् 2024 की कार्तिक पूर्णिमा को परमकृपालु श्रीमद् राजचन्द्रदेव की जन्मशताब्दी आ रही है, ठीक उसी अवसर पर इस पुस्तिका को प्रकाशित करने का सद्भाग्य प्राप्त होने से मुझे अत्यंत आनन्द हुआ है। इस पुस्तिका में 'उपास्यपद पर उपादेयता' और श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम हम्पी का संक्षिप्त वृत्तांत समाविष्ट हुआ है, जो दोनों प.पू. श्री