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प्रेरणा इस अल्पात्मा पंक्तिलेखक ने बरसों पूर्व बोरडी में अपनी पुष्प-पंखुड़ी-सी दानराशि से की थी। __ आज तो इस अनुवादकृति के प्रकाशन में निमित्त बने हुए गुरुबंधु श्री पेराजमलजी एवं श्री बाबुलालजी सहित सभी को अनेकानेक धन्यवाद, विशेषकर अर्थ सहयोगियों को जिनकी सूची अलग दी गई है।
परमगुरुओं की आज्ञा सर्वत्र अनुपालित हो और उनका योगबल विश्वकल्याणकर बनो।
सोमवार, शरदपूर्णिमा
प्रा. प्रतापकुमार ज.टोलिया दि. 29.10.2012
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