________________
घडी में यहां आ पहुंचे एवं बस गये। सात साल बीत गय, वे अब भी यहीं हैं। यहीं समाधि लगाने की एवं देह छोड़ने की उनकी इच्छा है ।
उन्होंने अपनी साधना में काफी प्रगति की है, ऐसा ज्ञात होता है । उनका विशाल हृदय परोपकार की भावना से भरा हुआ है। वे बोलते बहुत कम हैं, अधिकतर मौन रहते हैं । बाकी लोगों की बातें चल रही हों, तब भी वे बैठे-बैठे आंतर ध्यान में डूब जाते हैं और अपने आत्माराम की बातें सुनने लगते हैं। अधिक समय वे अपनी उपत्यका में बिताते हैं । “निज भाव मां वहेती वृत्ति" की उच्च साधना की प्रतीति में उन्हें दिव्य वाद्यों का अनाहत नाद एवं घंटारव सुनाई देता है । ध्यान एवं भक्ति के सामुदायिक कार्यक्रम के समय पद्मासन में, स्तम्भ-से दृढ बैठे एवं निज आनंद की मस्ती में डोल रहे खंगारबापा को देखना आल्हाद-प्रदायक है। उनके दर्शन से मैं बड़ा प्रमुदित हो गया।
हां, रात्रि के अंधकार में अगर वे मिल जायें, तो उनसे अपरिचित लोग उनसे डर अवश्य जायेंगे।
आत्माराम : एक अजीब साधक- ये हैं यहां के दूसरे साधक, शरीर हृष्ट-पुष्ट, रंग श्वेत श्याम । नहीं, यह कोई 'मानव' नहीं, श्वान' है। नमकहलाल, वफादार फिर भी
• इस लिखावट के कुछ वर्ष बाद खंगारबापा समाधिपूर्वक देह त्याग कर चुके हैं।
१३