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प्रेतात्माओं से इसे मुक्त, शुद्ध एवं निर्भय बनाकर साधकों के लिए साधना योग्य बनाया। वहीं की अन्य गुफाओं एवं उपत्यकाओं में कुछ साधक अब निर्भय रूप से साधना कर रहे हैं । उनमें से कुछ का परिचय प्राप्त कर लें। * मैंने देखा उन साधकों को
यहां विभिन्न प्रांतों के कुछ साधक स्थायी रूप से रहते हैं। हजारों प्रतिवर्ष यथावकाश यहां आते हैं। लाखों की संख्या में पर्यटक भी प्रतिवर्ष इस आश्रम को देखने आते हैं । स्थायी साधकों में से तीन का परिचय प्रस्तुत है :
खेंगारबापा : ८० साल का गठला शरीर, गोल, चमकदार, भव्य चेहरा, बडी-बडी आंखें, आधी बांह की कमीज व आधा पतलून पहने हुए- ये हैं खेंगारबापा । कभी डोलते, कभी स्थिर कदमों से चलेते हुए वे 'यंत्रमानव' के-से लगते हैं । पद्मासन लगाकर जब वे ध्यान करते तब पहाड के किसी एकाकी, अडिग, पाषाण खण्ड-से लगते ।
बे कच्छ के मूल निवासी थे, परंतु मद्रास में बस गये थे। जवाहिरात का उनका कारोबार खूब चल रहा था। अमोल रत्नों की परख करते-करते आंतरिक रतन-आत्माराम को परखने की उत्कट इच्छा जागी, गुफाओं का बुलावा सुनाई दिया । संसार की मोह-माया से मुक्त होने का समय भी हो चुका था। अत: वे सद्गुरु की खोज में निकल पडे । २५,००० रुपयों का खर्च एवं भारत-भ्रमण करने के पश्चात् किसी शुभ
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