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(गीत) (7) “गौतम जैसे पंडितों को सत्यपंथ बतलाया।
श्रेणिक जैसे नृपतियों को धर्म का मर्म सुनाया। रोहिणी जैसे चोर कुटिलों को मुक्ति का मार्ग दीखाया, मेघकुमार समान युवान को जीवन मंत्र सीखाया"
(००००० वाद्य संगीत ०००००) (गीत) (M) “एक दिन पूर्व का शिष्य गोशालक, प्रभु को देता गाली।
मैं सर्वज्ञ महावीर जैसा - कह के चली चाल काली। तेजोलेश्या छोड़ के उसने चेताई आग की ज्वाला;
वीर के बदले खुद ही उस में जलने लगा गोशाला ॥" (सूरमंडल) (F) - गंगा के निर्मल नीर जैसी उनकी वाणी में अपूर्व संमोहन था, जादु था, अमृत था, अनंत सत्य का भावबोध था - (गीत) (राग केदार) “अनंत अनंत भाव भेद से भरी जो भली, अनंत अनंत नय निक्षेप से व्याख्यानित है।
सकल जगत हित कारिणी हारिणी मोह, तारिणी भवाब्धि मोक्षचारिणी प्रमाणित है।"
(००००० वाद्य संगीत परिवर्तन ०००००) (गीत) “गंगा के निर्मल नीर-सरिखी, पावनकारी वाणी (बानी); घोर हिंसा की जलती आग में, छिटके शीतल पानी
उनके चरन में आकर झुके, कुछ राजा कुछ रानी; शेर और बकरीवैर भुलाकर, संग करे मिजबानी॥ (सूरमंडल) कहते हैं - तीर्थंकर भगवान महावीर की यह धीर-गंभीर, मधुर -मंगल, मृदुल-मंजुल सरिता-सी वाक्-सरस्वती राग मालकौंस में बहती थी (वृंदगीत) (राग-मालकौंस; ताल-त्रिताल) (पूर्व वाद्य-वादन, पश्चात् गान) "मधुर राग मालकौंस में बहती तीर्थंकर की बानी। मानव को नवजीवन देती तीर्थंकर की बानी ।। दिव्यध्वनि ॐकारी॥
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