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zna Proof. Ut. 16.8.18
पन्द्रह वर्ष .... । आज पंद्रह वर्ष बीत चुके हैं - (स्वर्ग से भी सुंदर इस "सुजलाम् सुफलाम्" भारत भूमि की मुक्ति के ।) बहिश्तसे भी बेहतर इस हिन्दोस्ताँ की आज़ादी के !!! वह आज़ादी, वह कि जिसके लिये कितनोंने अपनी जानें कुर्बान कर दी.... कितनों ने अपना सर्वस्व लुटा दिया... । तवारीख ले चलती है हमें मुक्ति के संग्राम और बलिदान के उन खून से भरे हुए दिनों पर... आज से बयालीस साल पहले; प्रथम विश्वयुद्ध के बाद, उन्नीस सौ उन्नीस की तेरहवीं अप्रैल के रोज़ वीरभूमि पंजाब के अमृतसर के एक स्थान पर आज़ादी के नुमाइंदों की कसौटी हुई थी ।
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यही है वह स्थान जलियानवाला बाग मुक्ति संग्राम का आरंभस्थान (प्रकाश दर्शन) उस दिन यहाँ भारत माँ के बीस हज़ार लाडले एक साथ इकट्ठे मिले थे- दिल में सरफरोशी की तमन्ना लेकर और सर पर कफ़न, बाँधकर ।
(पात्र प्रवेश और गान : 'इन्किलाब जिंदाबाद' के नारों के साथ युवक, युवतियाँ, बच्चों- बूढ़ों का मंच पर प्रवेश प्रायः पंजाबी वस्त्र परिधान। सभी का धीरे धीरे बैठ जाना सभा के रूप में और एक युवक नेता का खड़े होकर हाथ में एक खंजरी लिये गाना और भाषण करना। सभी के द्वारा गीत को दोहराना । गीत का प्रसारण पार्श्वभूमि से ।) 5
वृंदगान :
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"सर पर बाँध..... सर पर बाँध कफ़न जो निकले; बिन सोचे परिणाम रे वीरों की.... वीरों की यह बाट है भाई ! कायर का नहीं काम रे (३) - वीरों की (३)
दिल का घोड़ा कसकर दौड़ा मार चला मैदान रे (२) - चलता मुसाफिर ही पायेगा मंज़िल और मुकाम रे वीरों की
मंज़िल और मुकाम रे
आओ साथी साथ चलें, साथ चलें
आओ साथी साथ चलें, इस साथ से देश के साथ रहें,
भारतमैया मांग रही है, तेरा अब बलिदान रे..... तेरा अब बलिदान रे वीरों की
( दुखायल )
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zna Proof. ut. 15.5.18
वीर करणसिंह (आवेश के साथ)
मेरे प्यारे भाइयों और बहनों!.... आप सब जानते हैं, हम यहाँ आज क्यों इकट्ठे हुए हैं। सभी को मालूम है कि लाहौर कोंग्रेस ने अंग्रेज़ सरकार को चुनौती दी है और एलान किया है कि हिन्दुस्तान के लोग अब जाग जायें। इन कमबख़्त अंग्रेज़ों ने हमें लूटने में कोई कसर नहीं रखी। (आक्रोश ) उन दिलों को तोड़ दिया गया जो मुल्क के माहिर थे; उन नयनों को फोड़ दिया गया जो देश के एहलेवतन के साहिर थे उन हाथों को काट दिया गया जो कला-कारीगरी के मालिक थे। और लाखों गरीबों को, मजदूरों को आज तक पीटा गया, लूटा गया, चूसा गया !! ( रुककर और सभा से एक बच्चे को उठाकर ) देखिये, देखिये यह मासूम बच्चा ! टूटी फूटी हड्डियों का ढाँचा है यह !! ऐसे एक दो नहीं, लाखों और करोड़ों बच्चे हैं इस देश में न सीने पर खून न आँखों में रोशनी !! उनके बदन पर खून तब चढ़ सकता है जब हम आज़ाद हों, जब हमारे हाथ में अपना राज हों । इस लिये आज हमें जान की भी बाज़ी लगाकर फैसला करना है कि यह अत्याचारी ब्रिटिश सल्तनत इस देश में रहणी चाहिये या नहीं ।
सभाजन नहीं, नहीं हरगिज नहीं ।
करणसिंह : तो अब देरी करने का वक्त नहीं है मेरे दोस्तों, आप बीस हज़ार लोग...... ! ( सभाजनों को दिखाकर ) क्या नहीं कर सकते आप ? हिन्दोस्ताँ की तकदीर आप बदल दे सकते हैं, मुठ्ठी भर अंग्रेज़ों की आप धज्जियाँ उड़ा दे सकते हैं। बोलिये, कितने तैयार हैं सरकार से टक्कर लेने के लिये ?
सभाजन : मैं.... ( दूसरा ) मैं.... ( तीसरा ) मैं.... ( चौथा ) हम सब.....
हम सब
करणसिंह : (ऊपर देखकर) शुक्र है खुदा का ! तो दोहराइये मेरे साथ (जोर से ) इन्किलाब -
सभाजन : जिन्दाबाद |
करणसिंह : वन्दे -
सभाजन : मातरम् ।
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