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प्रज्ञा संचयन
अनेक सरिताओं तक शिबिरों, ध्यान-संगीत-प्रवचनों के विविध कार्यक्रमों के द्वारा! .
...अब, ऐसी अनेक वीतरागवाणी - विदेशयात्राओं के पश्चात् कि जिन में परमगुरुओं के प्रत्यक्ष प्रतिनिधि-वत् आत्मद्रष्टा वात्सल्यमयी माताजी के
आज्ञा-आशीर्वाद सदा-सर्वदा साथ में रहे - विदेशों के अनेक प्रबल और प्रलोभनपूर्ण निमित्तों के निमंत्रण होते हुए भी, परमाज्ञानुसार प्रथम भारतभूमि पर ही, उस वीतरागवाणी के विश्वविद्यालय की भूमिका -रूप में फलित होना प्रारम्भ हो चुकी है वह परिकल्पना : तुंगभद्रातट की रत्नकूट श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम की परमगुरु सहजानंदघनजी की योगभूमि पर के उसके जिनालय सहित के विस्तार पूर्व बेंगलोर में, वर्धमान भारती - जिनभारतीआंतरराष्ट्रीय जैन विद्या विश्वविद्यालय के छोटे-से केन्द्र के रूप में! परमगुरुओं का योगबल उसे शीघ्र साकार करेगा ही।
- अनंतयात्री दिव्यदर्शी