________________
११०
प्रज्ञा संचयन
गांधीजी का जीवनमार्ग मुख्यतः जैन धर्म प्रधान है । मैं उस प्रतिज्ञा और संसर्ग की बात को स्वीकार करता हूँ फिर भी मेरे विचार से गांधीजी की अहिंसाप्रधान चिंतनशैली अहिंसा से संबंधित जैन चिंतनशैली से भिन्न ही है । सामिष आहार के त्याग की प्रतिज्ञा लेने की प्रेरणा करनेवाले या प्रतिज्ञा देनेवाले अगर आज जीवित हों तो वे गांधीजी के निरामिष आहार के आग्रह को देखकर अवश्य प्रसन्नता का अनुभव करें लेकिन साथ साथ अगर वे देखें कि गांधीजी ऐसा मानते हैं कि गाय भैंस आदि पशुओं का दूध उनके बछड़ों के मुँह से छीन कर पी लेना स्पष्ट रूप से हिंसा ही है, तो वे निश्चित रूप से यही कहेंगे कि यह किस प्रकार की अहिंसा है ..! श्रीमद राजचंद्रजी जीवित होते और वे गांधीजी को अशस्त्र प्रतिकार करते देखते - निःशस्त्र युद्ध करते देखते - तो सचमुच प्रसन्न होते, परंतु जब कोई पशु असह्य पीड़ा भोग रहा हो और किसी भी तरह उसे बचाना संभव न हो तब इंजेक्शन आदि की सहायता से उसे प्राणमुक्त करने में भी प्रेमधर्म और अहिंसा ही निहित है ऐसा आचरण करते, मानते या मानने को प्रेरित करते देखते तो वे गांधीजी की मान्यता तथा आचरण को जैन अहिंसा कभी भी न कहते । उसी प्रकार पागल कुत्ते को मार डालना चाहिए अथवा खेती की फसल का नाश करनेवाले बंदरों का विनाश किया जाना चाहिए ऐसी मान्यता का सामाजिक अहिंसा की दृष्टि से समर्थन करनेवाले गांधीजी को श्रीमद् राजचंद्रजी शायद ही जैन-अहिंसा के पोषक मानते । गांधीजी के जीवन में संयम तथा तप का स्थान बहुत उच्च है जो जैन धर्म के विशिष्ट अंग हैं। अनेक प्रकार के कठिन नियमों का सहज रूप में, आसानी से पालन करनेवाले, उपवासों की - लंबे उपवासों की शृंखला के कारण प्रसिद्ध हुए गांधीजी के संयम तथा तप को जैनों की तपश्चर्या या संयम के रूप में शायद ही कोई स्वीकार करेंगे । ब्रह्मचर्य का - किसी भी जैन साधु, किसी भी त्यागी साधक से भी ब्रह्मचर्य का - अधिक सर्वदेशीय मूल्यांकन करनेवाले गांधीजी जब स्वयं किसीका विवाह करवा कर नवदंपती को आशीर्वाद देते होंगे या किसी विधवा के भाल पर सौभाग्य का तिलक करवाते होंगे या किसी के विवाह विच्छेद के लिए अपनी सम्मति देते होंगे तब,मैं मानता हूँ कि शायद ही कोई जैन ऐसा होगा जो गांधीजी के ब्रह्मचर्य को पूर्ण ब्रह्मचर्य मानने के लिए तैयार हो । चाहे कितने ही दिनों के लिए गांधीजी उपवास करें, लेकिन वे उपवास में नींबु का पानी लें अथवा ये उपवास आत्मशुद्धि के साथ साथ सामाजिक शुद्धि एवं राजकीय प्रगति का भी अंग हैं ऐसा मानें और मानने की प्रेरणा