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गांधीजी का जीवनधर्म
१०९ होता है, न बबूल के जैसा कसैला । न तो उसमें गुलाब का रंगरस होता है, और न चंपा के फूल का रंग-रस । शहद विभिन्न वृक्ष-वनस्पति की सामग्री में से निष्पन्न भले हुआ हो परंतु उसमें मधुकर की क्रियाशीलता तथा पाचन शक्ति का विशेष योगदान होता है । मधुकर के अतिरिक्त अन्य कोई किसी यंत्र की सहायता से या अन्य किसी प्रकार से रस खींचे तो वह और कुछ भी हो सकता है परंतु वह मधुर तो होगा ही नहीं। यह शहद विविध वृक्षों - वनस्पतियों के रस में से तैयार होता है फिर भी शहद की मीठास या उसका पथ्य पोषक तत्त्व किसी भी वृक्ष-वनस्पति में नहीं होता । विविध वनस्पतियों के रसों पर मधुकर की पाचक-शक्ति ने तथा क्रियाशीलता ने जो प्रभाव उत्पन्न किया वही मधु के रूप में अखंड स्वतंत्र वस्तु बन कर तैयार हुई है । उसी प्रकार गांधीजी के जीवनप्रवाह में भले ही विभिन्न धर्मस्रोत आ मिले हों, परंतु ये सभी स्रोत अपना नाम और रूप छोड़कर उनके जीवन पटल में मधुरतम रूप में एक नूतन एवं अपूर्व धर्मस्वरूप में परिवर्तित हो गये हैं, क्यों कि गांधीजी ने उन धर्मों के तत्त्व अपने जीवन में न तो उधार लिये हैं, न बाहरी तत्त्वो के रूप में अपने जीवन में समाविष्ट किये हैं। उन्होंने तो उन तत्त्वो को अपने विवेक एवं क्रियाशीलता के द्वारा आत्मसात् कर उनमें से एक परस्पर कल्याणकारी ऐसा पूर्णतः नूतन धार्मिक दृष्टिबिंदु ही निष्पन्न किया है । गांधीजी वेदों को माननेवाले हैं परंतु वेदों के अनुसार यज्ञ वे कभी नहीं करेंगे । वे गीता का साथ कभी नहीं छोडेंगे परंतु उसमें विहित शस्त्रों के द्वारा दुष्टों के दमन की बात में कभी विश्वास नहीं करेंगे। कुरान का वे आदर करेंगे परंतु किसीको काफिर नहीं मानेंगे। बाइबल के प्रेमधर्म का वे स्वीकार करेंगे लेकिन धर्मांतर को वे पूर्णतः अनावश्यक मानेंगे। सांख्य, जैन एवं बौद्धों के त्याग को अपनायेंगे किंतु जगतरूप मिथिला या मानवरूप मिथिला * दुःखाग्नि में जल रही हो - सुलग रही हो तब और बौद्ध जातक महाभारत के विदेहजनक की भाँति या जैनों के नमिराजर्षि की भाँति मेरा कुछ भी नहीं जल रहा है' ऐसा कह कर जलती हुई मिथिला को छोड़ कर एकांत अरण्यवास में नहीं चले जायेंगे। जैन चिंतनशैली से भिन्न अहिंसा
कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि गांधीजी का निरामिष भोजन का आग्रह एक जैन साधु के पास उनके द्वारा ली गई प्रतिज्ञा का परिणाम है तथा अहिंसा से संबंधित उनके दृढ़ विचार श्रीमद् राजचंद्रजी के परिचय का फल है और इस कारण से