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पुष्प एकाकी यह पुष्प सुवासित स्मति दिलाता है - मेरे एकाकी- अकेलेपन की । आज मेरी मेज पर अकेला वह भी जो पड़ा है !! फिर वह स्मृति दिलाता है -.. मेरे आगत, विगत, अतीत की, जब कि ऐसे ही पुष्प, एक नहीं दो दो, रोज मेरी मेज पर रहा करते थे : किसी के द्वारा चुपचाप, मरे ज्ञाताज्ञात रूप के प्रति रखे जा कर ! आज .... न वे पुष्प हैं ....! न वे पुष्पित दिन ...!!...
और न निकट वह पुष्प-समर्पिता !!! बस स्मृतिभर है अब उस की,
अनंत की अनुज