________________
७७
ग्राम, वन एवं पर्वत . सदृश रूपवान थे, वहाँ के निवासी मधुरभाषी थे। उनके दर्शन से आह्लाद प्राप्त होता था। सीधी-सादी भाषा में सभी बात करते थे। तृणमात्र के उपकार के लिए अपना जीवन देने के लिए लोग तैयार रहते थे, पूरे गाँव में सज्जनों का निवास था (५७.१,२) । किन्तु यहाँ मायादित्य इन सब गुणों से रहित एवं मित्रद्रोही था। आवश्यकची में शालिग्राम को मगध के समीप स्थित बतलाया गया है। पिण्डनियुक्ति के अनुसार गोबरग्राम के नजदीक शालिग्राम स्थित था। किन्तु इसकी ठीक पहचान नहीं की जा सकी है।'
नगरों की अपेक्षा कुछेक ग्रामों का ही उल्लेख इस बात का परिचायक है कि ग्रन्थकार की दष्टि, विषयवस्तु की महिमा के कारण संस्कृति, व्यापार एवं वाणिज्य के मर्मस्थल नगरों पर ही अधिक थी। कथा प्रसंगों में ही उन्होंने इन ग्रामों का वर्णन कर दिया है। इन प्रमुख ग्रामों के अतिरिक्त उद्योतनसूरि ने उन गावों का भी चित्र प्रस्तुत किया है, जो किसी जाति विशेष के ही निवासस्थान होते थे तथा जिनकी अपनी अलग संस्कृति होती थी। ऐसे गाँवों को प्राचीन भौगोलिक शब्दावलि में 'पल्लि' कहा जाता था।
उद्द्योतनसूरि ने उदाहरण के तौर पर दो पल्लियों का अपने ग्रन्थ में वर्णन किया है। एक चिन्तामणिपल्लि एवं दूसरी म्लेच्छपल्लि । प्रथम पल्लि धार्मिक एवं मानवीय सभी गुणों से युक्त व्यक्तियों का निवास स्थान थी, तो दूसरी हिंसक अधार्मिक एवं असंस्कृत म्लेच्छों की बस्ती । ग्रन्थ के आधार पर इनका विशेष वर्णन इस प्रकार है :
चिन्तामणिपल्ली (१३९.३)-कूमार कुवलयचन्द्र भिल्लपति के साथ सह्यपर्वत की गुफा में स्थित महापल्लि में गया।२ उसमें कहीं मनोहर चामरी गाय की पूंछ के बालों से घर एवं कुटियों के छज्जे बने हुए थे, कहीं मोर के सघन पंखों द्वारा ग्रीष्मऋतु योग्य मंडप शोभित हो रहे थे, कहीं हाथी के दाँत की वल्ली लगायी गयी थी, कहीं मुक्ता एवं पुष्पों के चौक पूरे गये थे तथा कहीं चन्दनवृक्ष की शाखाओं में झूले पड़े हुए थे, जिन पर ललनाएँ गीत गाकर झल रही थीं। उस पल्लि में भिल्लपति का धवलगृह अत्यन्त मनोरम था (१३९. १६) । उसके अभ्यन्तर भाग में देवगृह निर्मित था (१३९.५) एवं भोजन मंडप की व्यवस्था थी (१३९.११)। इस महापल्लि का नाम चिन्तामणिपल्ली था (१३९.३)।
इसकी आधुनिक पहचान नहीं की जा सकी है। ओटो स्टेइन ने पल्लि का विशेष अध्ययन किया है।
१. ज०-ला० के०, पृ० ३२९ २. गओ सज्झगिरि-सिहर-कुहर-विवर-लीणं महापल्लिं-१३८.११.
कहिंचि चारुचमरी-पिंछ-पन्भारोत्थइयघर-कुडीरया-गीयमणहर, पृ० १३८
११,१३. ४. जीनिस्टिक स्टडीज, पृ० १९.