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________________ ७० कुवलयमालाकहा कां सांस्कृतिक अध्ययन थी ।' डा० राय ने मिथिला के सांस्कृतिक इतिहास पर विशेष प्रकाश डाला है । नेपाल के आधुनिक नगर जनकपुर से इसकी पहचान की जाती है। 3 रत्नापुरी ( १४० . १ ) - रत्नापुरी उपवन, वन, सन्निवेश आदि से युक्त तथा जनसमुदाय से परिपूर्ण थी ( १४०.१ ) । आदिपुराण में ( १९.८७) भी रत्नपुर नाम के नगर का उल्लेख है, जो कोशल जनपद में था । अयोध्या के राजा दृढ़वर्मन् के भ्राता श्री रत्न- मुकुट की यह राजधानी थी । उद्द्योतन ने इसका काव्यात्मक वर्णन किया है। जैन परम्परा में १५वें तीर्थङ्कर की जन्मभूमि के रूप में एक रत्नपुर का उल्लेख मिलता है। इस रत्नपुर की पहचान अवध राज्य के सोहवाल स्टेशन से २ मील दूरी पर स्थित रोइनोइ नामक स्थान से की गई है । * सम्भवतः कुव० की रत्नापुरी भी इसी स्थान से सम्बन्धित है । _राजगृह (२६९.९) - उद्योतनसूरि ने इस ऐतिहासिक तथ्य की सूचना दी है कि मगध की राजधानी राजगृह थी और वहाँ श्रेणिक राजा का राज्य था । भगवान् महावीर के विहार के स्थानों में राजगृह का अनेक बार उल्लेख हुआ है । विहार में स्थित वर्तमान राजगृह प्राचीन राजगृह है । _ऋषभपुर (२४६.३२, २५१.१० ) - जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के अर्ध-मध्यमखण्ड में ऋषभपुर नाम का नगर था ( २४६.३२ ) । वहाँ का राजा शूर, धीर एवं संग्राम में शत्रु को हरानेवाला चन्द्रगुप्त था, जो मन्त्रणा में गुप्त था, किन्तु यश में नहीं ।" इस चन्द्रगुप्त का प्रसिद्ध गुप्त राजा चन्द्रगुप्त से कोई सम्बन्ध नहीं बन पाता तथा ऋषभपुर की भी पहचान नहीं की जा सकी है । लंकानगरी (३१.३०), लंकापुरी (११८.१८ ) - उद्योतनसूरि ने लंका नगरी के सम्बन्ध में निम्न जानकारी दी है— कोशाम्बी नगरी त्रिकूटशैल - शिखर पर स्थित लंकानगरी जैसी थी । सुवर्णदत्ता का पति देश-विदेश के व्यापार के निमित्त जहाज में चढ़कर लंकापुरी गया था, किन्तु बारह वर्ष तक वापिस नहीं लौटा। एक यात्री लंकापुरी को जहाज द्वारा जाते हुए रास्ते में जहाज भग्न हो जाने से कुडंगद्वीप में जा लगा ( ८६.६ ) । विन्ध्याटवी सर्पाकार शिखरों से दुलंघ्य १. वैदेहजनपदे मिथिलियां राजधान्याम् - दिव्यावदान, पृ० ४२४. २. रा० प्रा० न०, पृ० १७९.८१. ३. ज०, ला० कै०, पृ० ३१४. ४. ज० -ला० कै०, पृ० ३२७. ५. तत्थ य राया सुरो धीरो परिमलिय- सत्तु संगामे । णामेण चंदगुप्तो गुत्तो मंते ण उण णामे ॥। २४७.१. ६. अहव तिकूड - सेल - सिहरोयरि लंका गयरिया इमा – कुव० ३१.३०. ७. दिसादेस - वणिज्जेणं जाणवत्तमारुहिउं लंकाउरि गओ, ७४.११.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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