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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन जूनागढ़ राज्य के सोमनाथ से प्रभास की पहिचान की जाती है ।' किन्तु संभवतः प्रभास और सोमनाथ दो भिन्न तीर्थ स्थान थे, क्योंकि उद्द्योतन ने दोनों का एक साथ उल्लेख किया है (४८.२५) ।।
प्रतिष्ठान (५७.२६)-स्थाणु और मायादित्य वाराणसी के शालिग्राम से व्यापार के लिए दक्षिणापथ पर निकले थे-(ता वच्चिमो दक्षिणावहं, ५७.२७) । अनेक पर्वत, नदियाँ एवं अटवियों को पार करते हुए वे किसी प्रकार प्रतिष्ठान नगरी में पहुँचे, जो अनेक धन-धान्य एवं रत्नों से उक्त स्वर्ण नगर की तरह था (५७.३०)। वहाँ उन्होंने अनेक प्रकार के व्यापार किये-(णाणा-वाणिज्जाइं कयाई) तथा प्रत्येक ने पाँच हजार सुवर्ण कमाये । इसके ज्ञात होता है कि प्रतिष्ठान आठवीं शदी में व्यापार का प्रमुख केन्द्र था। बनारस से प्रतिष्ठान पहुँचने के लिए घना जंगल पार करना पड़ता था, जिसमें चोरों का भय बना रहता था (५७-३१) । प्रतिष्ठान शालिवाहन राजाओं की पश्चिमी राजधानी थी। तथा प्राचीन समय से ही इसे व्यापारिक और धार्मिक महत्त्व प्राप्त था। प्रतिष्ठान की पहिचान आधुनिक गोदावरी के तट पर स्थित पैंठान से की जाती है।
भरुकच्छ (९९.१८, १२३.१९)-विन्ध्यवास की रानी तारा ने भरुकच्छ में जाकर शरण ली थी (९९.१८)। भरुकच्छ नगर के राजा का नाम भगु था (१२३.१९) । दर्फफलिक ने भृगुकच्छ में जाकर महामुनि के दर्शन किये (२१५.२८)। इसके अतिरिक्त उद्योतन ने भरुकच्छ के सम्बन्ध में अन्य जानकारी नहीं दी है। प्राचीन भारत में भृगुकच्छ एक प्रसिद्ध नगर था। यह भृगुपुर, भरुकच्छ तथा भृगुतीर्थ आदि नामों से भी जाना जाता था। इस नगर के साथ राजा भृगु का सम्बन्ध पुराणों में विस्तारपूर्वक वणित है। डा० अल्टेकर का मत है कि इस राज्य में नर्मदा एवं मही के बीच का प्रदेश सम्मिलित था। इस नगर की पहचान आधुनिक भड़ोंच से की जाती है।
भिन्नमाल (२८२.९)-उद्द्योतसूरि ने प्रशस्ति में श्रोभिल्लमालनगर का उल्लेख किया है, जहाँ शिवचन्द्रगणि जिनवन्दना के लिए गये थे। डा० उपाध्ये
१. डे०-ज्यो० डिक्श०, पृ० १५७. २. तत्थ अणेय-गिरि-सरिया-सय-संकुलाओ अडईओ उल्लंघिऊण कह कह वि पत्ता
पइट्ठाणं णाम णयरं–कुव० ५७.२८, २९. ३. म०-ए० इ०, पृ० १३३. ४. डे--ज्यो० डिक्श०, पृ० १५९. ५. अ०-ए. टा०, पृ० ३३. ६. कूर्मपुराण २, अध्याय ४१ आदि । ७. अल्टेकर-वही०, पृ० ३५. ८. सो जिण-वंदण-हेउ कह विभमंतो कमेण संपत्तो ।
सिरि भिल्लमाल-णयरम्मि संठिओ कप्परुक्खो व्व ॥२८२.९.