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की नगरी जयन्ती थी, यह उल्लेख मिलता है ( १९.५० ) । इस जयन्तीपुरी की तुलना पुण्यास्रवकथाकोश में वर्णित भरतक्षेत्र के अन्तर्गत जयन्तपुर से की जा सकती है । डॉ० उपाध्ये ने इसकी पहचान कर्नाटक राज्य के कनर जिले के 'बनवासी' नामक स्थान से की है । जयश्री (१०४. ८ ) - - चम्पा नगरी से सागरदत्त दक्षिणापथ द्वारा चलता हुआ दक्षिण समुद्र के किनारे स्थित जयश्री नाम की महानगरी में पहुँचा (१०४८ ) । उद्योतनसूरि ने इस नगरी का जो वर्णन किया है, उससे इसकी स्थिति समुद्रतट पर होनी चाहिए ।
तक्षशिला ( ६४.२७ ) - उत्तरापथ में तक्षशिला नाम की नगरी थी, जो प्रथम जिन (ऋषभदेव ) के समवसरण से शोभित थी । धर्मचक्र का प्रवर्तन वहाँ हुआ था । द्वीपसमुद्र की भाँति वहाँ असंख्यात धन-वैभव विखरा पड़ा था ( ६४.३३ ) । तक्षशिला गन्धार राज्य की राजधानी थी । जातकों में शिक्षा के प्रमुख केन्द्र के रूप में इसका बहुत उल्लेख हुआ है । इसकी पहचान पंजाब रावलपिण्डी से वारह मील दूर स्थित शाहधेरी नामक स्थान के खण्डहरों से की जाती है । "
नगर
द्वारकापुरी (१४६ - २३ ) - विजयनगरी द्वारकापुरी सदृश समुद्र से घिरी हुई थी, किन्तु उसमें कृष्ण का निवास नहीं था । लाट देश में प्राचीन नगरियों में द्वारकापुरी नाम की रम्य नगरी थी । इससे ज्ञात होता है कि जिस नगरी में कृष्ण रहते थे तथा जो समुद्र के किनारे थी वह द्वारका लाट जनपद में स्थित थी । प्राचीन साहित्य में साढ़े पच्चीस आर्य देशों में द्वारका का उल्लेख हुआ है । णायाधम्म कहा (५, पृ० ५८ ) के अनुसार यह नो योजन चौड़ी और वाह योजन लम्बी नगरी थी, जो चारों ओर से पत्थर की दीवारों से घिरी हुई थी । द्वारावती के उत्तरपूर्व में रैवतक पर्वत था और उसके पास ही नन्दन वन था ।" द्वारका व्यापार का बहुत कड़ा केन्द्र था । नेपालवहन से व्यापारी नाव द्वारा द्वारावती आते थे । आजकल द्वारावती की पहचान रेवतक पर्वत के पास स्थित आधुनिक नगर जूनागढ़ से की जा सकती है और द्वारावती को भिन्न मानते हैं । "
। श्री भट्टशाली द्वारका
१. पढमजिण समवसरणेण सोहिया धम्म चक्कंका-कुव० ६४.३५.
२. क० – ए० ज्यो०, पृ० ६८१, बी० सी० ला – ज्यो० आफ अर्ली बुद्धिज्म, पृ० ५२.
वारयाउरि जइसिय समुद्द-वलय परिगय ण संणिहिय - गोविंद - कु० १४९.२३. तम्मिय पुरी पुराणा णामेण य वारयाउरी रम्मा, १८५.९.
ज० -ला० कै०, पृ० २७१.
नि० चू० पृ० ११०.
एन० के० भट्टशाली -- इण्डियन हिस्टोरिकल क्वाटर्ली, १९३४, पृ० ५४१.५०.
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