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परिच्छेद दो
नगर
कुवलयमालाकहा में विभिन्न प्रसंगों में चौवालिस नगरों का उल्लेख हुआ है। इनकी विशेष जानकारी इस प्रकार है :
अरुणाभपुर (२३२.२३)-अरुणाभपुर श्रावस्ती के नजदीक ही स्थित रहा होगा।' यहाँ से उज्जयिनी तक आने-जाने का मार्ग था (२३२.३१) । इसकी आधुनिक पहचान नहीं की जा सकी है। उद्योतन ने इसका अपर नाम रत्नाभपुर भी दिया है (२३५.२३) ।
अलका (३१.३१, १३८.१४)-अलका नगरी इन्द्र की नगरी मानी गयी है, जिसके सदश रत्न एवं सुवर्ण से युक्त कोशाम्बी नगरी थी। महाकवि कालिदास ने अलका को कुबेर को नगरी कहा है और उनका अत्यन्त काव्यात्मक एवं अलंकृत वर्णन किया है। किन्तु पं० सूर्यनारायण व्यास ने मेघदूत में उल्लिखित अलका को जावालिपुर के समीप स्थित माना है, जो प्राचीन वर्णनों के अनुसार सर्वथा सदोष है। साथ ही उद्द्योतनसूरि स्वयं जावालिपुर के रहने वाले थे । यदि अलका इस नगर के समीप स्थित होती तो वे निश्चित ही उसका अधिक वर्णन करते । जवकि उन्होंने केवल इसका परम्परागत काव्यात्मक रूप से ही उल्लेख किया है। अतः यहाँ ग्रन्थकार का संकेत कालिदास की अलका नगरी की ओर ही जान पड़ता है।
अयोध्या (८.२७, ११.५, १७७.७)-अयोध्या का ग्रन्थ में छह बार उल्लेख हुआ है । प्राचीन भारत की यह प्रसिद्ध नगरी थी। उद्द्योतन ने इसको
१. अत्थि इओ णाइदूरो अरुणाभं णाम पुरवरं-कुव० २३२.२३. २. अहव पुरन्दरस्स अलया इव रयण-सुवण्ण-भूसिया-३१.३१. ३. मेघदूत, पृ० ७. ४. विश्वकवि कालिदास : एक अध्ययन, ज्ञानमण्डल प्रकाशन, इन्दौर, पृ० ७७,