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________________ ( ८ ) सांस्कृतिक चेतना को प्रतिविम्बित करता है। उद्योतनसूरिकृत कुवलयमालाकहा बाण और सोमदेव की रचनाओं के समय के अन्तराल को अपनी साहित्यिक और सांस्कृतिक विशेषताओं से जोड़ती है। इस तरह महाकवि बाण, उद्योतनसुरि और सोमदेव के ग्रन्थों का सांस्कृतिक अध्ययन छठी से १०वीं शताब्दी तक के भारत के उस सांस्कृतिक स्वरूप को पूर्ण करता है, जो मात्र इतिहास व पुरातत्त्व के प्रमाणों से पूरा नहीं हो सकता था। इस तरह प्रत्येक शताब्दी की संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं की उन प्रतिनिधि रचनाओं का सांस्कृतिक अध्ययन आवश्यक है जिनमें देश के सांस्कृतिक इतिहास को पूर्णता मिलने की सम्भावनाएं हैं। उद्योतनसूरि की यह एकमात्र कृति उपलब्ध है। इसके अध्ययन से स्पष्ट है कि लेखक प्राचीन साहित्य, परम्परा, समकालीन संस्कृति तथा भाषाओं आदि से कितना अभिज्ञ था। उनके अगाध पांडित्य एवं बहुमुखी प्रतिभा का जीता-जागता प्रमाण है-कुवलयमालाकहा। इसके अध्ययन में प्रारम्भ से ही मैं सजग रहा हूँ कि प्रस्तुत कृति के मूल सन्दर्भो के आधार वर ही कोई वात कही जाय और लेखक के मन्तव्य को सही रूप में प्रगट किया जाय। स्व० डा० बुद्धप्रकाश, आदरणीय डा० रामचन्द्र द्विवेदी एवं पं० दलसुख भाई मालवणिया ने जिस परिश्रम और रुचि के साथ इस प्रबन्ध का अवलोकन किया है, उससे मेरे संकल्प और प्रस्तुतीकरण को बल मिला है। इस ग्रन्थ में कुव० के मूल सन्दर्भ उतने ही उद्धृत किये गये हैं, जितनों से वोझलता न बढ़े। अन्य सन्दर्भ प्रकाशित कुव० के पृष्ठ और पंक्ति को अंकों द्वारा सूचित कर दिये गये हैं। ग्रन्थ में वणित वस्त्र, अलंकार, शस्त्र, वाद्य एवं शिल्प के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए रेखाचित्र भी अन्त में दिये गये हैं। __प्रस्तुत ग्रन्थ कुवलयमालाकहा के अध्ययन की पूर्णाहुति नहीं है। इस ग्रन्थ के साहित्यिक और भाषावैज्ञानिक पक्ष को लेकर दो स्वतन्त्र अध्ययन प्रस्तुत किये जाने चाहिये। मेरा संकल्प है कि कु० के हिन्दी अनुवाद के साथ ही उक्त पक्षों पर भी तुलनात्मक अध्ययन भविष्य में प्रस्तुत करूँ। वहुत-सी इस विषयक सामग्री संकलित होने पर भी इस ग्रन्थ के साथ विस्तार भय से नहीं दी जा सकी है, जिसका उपयोग 'कुवलयमालाकहा का साहित्यिक मूल्यांकन' प्रस्तुत करते समय किया जा सकेगा। प्रस्तुत ग्रन्थ में कुवलयमालाकहा में प्रयुक्त साहित्यिक स्वरूप, ऐतिहासिक सन्दर्भ, भौगोलिक विवरण, सामाजिक जीवन, आर्थिक व्यवस्था, शिक्षा, भाषा और साहित्य, ललित कलाएँ एवं विज्ञान तथा धार्मिक जीवन के विविध पहलुओं को विवेचित किया गया है। विषयानुक्रमणिका से इस कृति की विषयवस्तु स्पष्ट हो जाती है। कुवलयमाला का यह प्रस्तुतीकरण आदि से अन्त तक मेरे अग्रज डा० गोकुलचन्द्र जैन, प्राच्यविद्या संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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