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________________ भारतीय जनपद वे जो भाषा बोल रहे थे उसके कुछ शब्द उद्द्योतन ने कुव० में दिये हैं। ये शब्द वर्तमान को तेलगु भाषा के अधिक समीप हैं । अतः ज्ञात होता है कि उस समय तेलगू भाषाभाषी प्रदेश भी कर्णाटक के अन्तर्गत था।' कर्पूरमंजरी (१-१५) एवं काव्यमीमांसा (३४-४) में कर्णाटक, का जो उल्लेख हुआ है, उससे ज्ञात होता है कि इसमें प्राचीन मैसूर और कुर्ग के भूःभाग सम्मिलित थे। यह आन्ध्र के दक्षिण और पश्चिम का जनपद था। गोदावरी और कावेरी के वीच का प्रदेश, जो पश्चिम में अरब सागर के तट के समीप है तथा पूर्व में ७८ अक्षांश तक फैला है, कर्णाटक कहलाता था। विजयनगर के राज्य को भी कर्णाटक कहा गया है। कन्नौज (१५०.२२) कन्नौज के छात्र विजयपुरी के मठ में पढ़ते थे।" कन्नौज को कान्यकुब्ज, इन्द्रपुर, महोदय, कुशस्थल आदि भी कहा जाता था । ७वीं शताब्दी से १०वीं तक कन्नौज उत्तर भारत के साम्राज्य का केन्द्र था। कीर (१५२.२८)-उद्द्योतन ने कहा है कि कीर के निवासी ऊंची और वड़ी नाकवाले, स्वर्ण सदृश रंगवाले, भार वहन करनेवाले तथा 'सारिपारि' शब्द बोलनेवाले थे (१५२ २८)। यह वर्णन काश्मीरी व्यक्तियों से अधिक मिलता-जुलता है। प्राचीन साहित्य में भी इसके उल्लेख मिलते हैं। कीर देश की पहचान पं० जयचन्द्र विद्यालंकार ने पंजाब के कांगड़ा जिले से की है। कांगड़ाघाटी में स्थित बैंजनाथ और उसके आस-पास का क्षेत्र कीर कहा जाता था।' मोनियर विलियम्स ने वराहमिहिर की बृहत्संहिता तथा मुद्राराक्षस का संदर्भ देकर कीर को काश्मीर माना है। काशी (५६.२५)-कुव० के अनुसार काशी नामक देश अनेक गाँवों से युक्त था। उसकी शोभा न्यारी थी। काशी जनपद में वाणारसी नगरी थी। सोमदेव के समय भी काशी जनपद के रूप में प्रसिद्ध थी (पृ० ३६०, उत्त०)। जैनसाहित्य में काशी जनपद का महत्त्वपूर्ण स्थान है। क्योंकि इसकी राजधानी १. उ०-कुव० इ०, पृ० १४५. अ०-प्रा० भौ० स्व०, पृ० ६८. ३. सोर्स आफ कर्णाटक हिस्ट्री भाग १, पृ० ७. ४. डे०-ज्यो० डिक्श०, पृ ९४. ५. लाडा कण्णाडा विय मालविय-कण्णुज्ज योल्लया केइ । मरहट्ठ य सोरट्ठा ढक्का सिरिअंठ सेंधवया ॥ १५०.२२. ६. अभिधानचिंतामणि, ४, ३९-४०. ७. नि० चू० २, ६८१, विशेषावश्यकभाष्य, ५-४६४. ८. भारतभूमि, पृ० ३४७. ९. एपिग्नेफिया इण्डिका, भाग १, पृ० ९७.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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