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परिच्छेद एक भारतीय जनपद
कुवलयमालाकहा में भारतीय चौंतीस जनपदों, सैंतालिस नगरों, सात ग्रामों, इक्कीस पर्वतों, आठ नदियों एवं सरोवर तथा उद्यानों का वर्णन प्राप्त होता है। बृहत्तर भारत के भी लगभग बीस देशों का उल्लेख मिलता है। उद्योतनसूरि के समय में प्राचीन भारत के विदेशों के साथ निरन्तर सम्बन्ध बढ़ रहे थे। व्यापारिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में पर्याप्त आदान-प्रदान होने लगा था। इस वात की पुष्टि एवं विवरण के लिए कुव० की भौगोलिक सामग्री पर्याप्त सहायक होती है। ग्रन्थ में अनेक ऐसे भौगोलिक शब्दों का भी प्रयोग हुआ है, जो तत्कालीन साहित्य एवं कला के पारिभाषिक शब्द थे। उपर्युक्त समग्र भौगोलिक सामग्री का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :
ग्रन्थ में जिन चौंतीस जनपदों का उल्लेख हुआ है, उनका अकारादि क्रम से परिचय इस प्रकार है :
अन्तर्वेद (१५२.२७)-उद्द्योतनसूरि ने व्यापारियों का वर्णन करते हुए उनके शारीरिक गठन, स्वभाव एवं भाषा आदि के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी दो है। यहाँ केवल भौगोलिक सन्दर्भो का विवेचन प्रस्तुत है। अन्तर्वेद के व्यापारी कपिल, पिंगल नेत्रवाले एवं भोजनप्रिय थे। उनकी भाषा हिन्दी के प्राचीन रूप से मिलती-जुलती थी। इसकी स्थिति एवं सीमा का कोई उल्लेख नहीं है। काव्य-मीमांसा (९४-१८) के अनुसार पश्चिम में विनशन से लेकर पूर्व में प्रयाग तक गंगा और यमुना नदियों के बीच का भूखण्ड अन्तर्वेद कहलाता था। यह मध्यदेश का एक भाग था।
पागासवप्प (२८२.११-१४) कुव० की नगर प्रशस्ति में इस नगर का उल्लेख हुआ है। उद्योतनसूरि के पूर्वज वडेसर ने इस नगर में जिनमन्दिर
१. विनशनप्रयागयोगंगायमुनयोश्चान्तरमन्तर्वेदीति, का० मी० ९४-१८,