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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन उपर्युक्त ऐतिहासिक सन्दर्भो से ज्ञात होता है कि उद्द्योतनसूरि भारतीय इतिहास एवं परम्परा के प्रति सजग थे। अपने उदार दृष्टिकोण के कारण उन्होंने वैदिक एवं श्रमण-परम्परा के सांस्कृतिक महापुरुषों, आचार्यों, प्रमुख देशों, नगरों एवं घटनाओं का समान रूप से अपने ग्रंथ में उल्लेख किया है। प्रसंग के अनुसार उनके संबंध में अपना अभिमत भी व्यक्त किया है । इससे तत्कालीन इतिहास, भूगोल, समाज एवं चिंतन पर विशेष प्रकाश पड़ता है ।
(२) वी०ए०स्मिथ-द अर्ली हिस्ट्री आफ इंडिया, १९५७. (३) पुरी, बी०एन०-द हिस्ट्री आफ द गुर्जर-प्रतिहाराज, १९५७.