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ऐतिहासिक-सन्दर्भ गया था। शक्तिभट ने उसे न केवल अपने आसन से उठा दिया, अपितु इसमें अपना अपमान समझ कर उसकी हत्या भी कर दी और वहाँ से भाग गया।'
इस प्रसंग में 'राइणो अवन्तिवद्धणस्स कय ईसि-णमोकारों का उल्लेख अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसका अर्थ हुआ कि उज्जयिनी का राजा अवन्तिवर्द्धन था, जिसकी सभा में वंश-परम्परा से सेवक ठाकुरों का अधिक सम्मान था तथा पुलिंद राजकुमार भी वहाँ उपस्थित रहते थे। यह अवन्तिवन राजा कौन था, अवन्ति के राजनैतिक इतिहास की दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है ?
उद्द्योतन ने एक दूसरे सन्दर्भ में उज्जयिनी के राजा का नाम श्रीवत्स कहा है, जो पुरन्दर के समान सत्य और वीर्यशाली था। उसका पुत्र श्रीवर्द्धन था। सम्भव है, उपर्युक्त प्रसंग के अवन्तिवर्द्धन एवं इस श्रीवर्धन में कोई वंशानुगत सम्बन्ध रहा हो। उज्जयिनी अथवा मालवा के साथ अवन्तिवर्द्धन राजा का सम्बन्ध तत्कालीन इतिहास में नहीं मिलता। किन्तु इससे यह सोचने के लिए आधार प्राप्त होता है कि उद्योतन के थोड़े समय बाद लगभग ८१० ई० में कश्मीर के उत्पलवंश में अवन्तिवर्द्धन नाम का लोकप्रिय राजा हुआ है। सम्भव है उसका मालवा से उद्योतन के समय में कोई सम्बन्ध रहा हो। किन्तु इसकी प्रामाणिकता के लिए अभी अनेक साक्ष्यों की प्रतीक्षा करनी होगी।
. अवन्ति नाम के नरेश के सम्बन्ध में उद्योतन द्वारा प्रस्तुत कुवलयमाला का तीसरा उल्लेख अधिक महत्त्वपूर्ण है। अरुणाभ नगर के राजा कामगजेन्द्र के समक्ष एक चित्रकार अपने चित्र की यथार्थता को प्रमाणित करते हुए कहता है कि-'राजन्, उज्जयिनी में अवन्ति नाम का एक राजा है, उसकी पुत्री के सौंदर्य को देखकर ही मैंने यह तदरूप चित्र बनाया है' :
उज्जेणीए राया अस्थि अवन्ति त्ति तस्स ध्याए।
दळूण इमं रूवं तइउ चिचव विलिहियं एत्थ ॥-२३३.१६ आगे भी अवन्ति की रानी-'रण्णो अवन्तिस्स' (३१) तथा 'अवन्तिणा' (३२) जैसे शब्दों के प्रयोग से यह स्पष्ट हो जाता है कि उज्जयिनी के राजा का नाम अवन्ति था।
उद्द्योतनसूरि द्वारा उल्लिखित उज्जयिनी के राजा अवन्ति की पहचान यशोवर्मन् के उत्तराधिकारी अवन्तिवर्मन् से की जा सकती है। प्राचीन ग्वालियर १. तओ राइणो अवन्तिवद्धणस्य कय-ईसि-णमोक्कारो....पहओ वच्छत्थलाभोए
पुलिंदो इमिणा रायउत्तो ।.......वही, ५०.३१-५१.६. २. उज्जयणीपुरी रम्मा (१२४.२८).......तम्मि य पुरवरीए सिरिवच्छो णाम राया
पुरन्दर सम-सत्त-विरिय-विहवो। तस्स य पुत्तो सिरिवद्धणो णाम ।
वही, १२५.३. ३. राजतरंगिणी-कल्हण ।