________________
( ६ )
का भी विवेचन किया गया है । इससे स्पष्ट है कि उस समय चिन्तन और धर्म के बीच सामञ्जस्य था ।
प्राशा है कि डा० जैन का यह ग्रन्थ भारतीय भाषाओं के अध्येताओं तथा कला और इतिहास के मर्मज्ञों का भी ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करेगा ।
जिस लगन एवं परिश्रम से पुस्तक को ग्राकर्षक रूप में मुद्रित किया गया है उसके लिए तारा प्रिंटिंग वर्क्स वाराणसी के प्रबन्धकों को हम हृदय से धन्यवाद देते हैं ।
नागेन्द्रप्रसाद निदेशक