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कुवलयमाला कहा का सांस्कृतिक अध्ययन
लगा । बारह वर्ष व्यतीत हो गये । अन्त में सात दिन तक लगातार उसने सुबह आकाशवाणी सुनी, जिसके द्वारा मायादित्य और चंडसोम की आत्माएँ उसे सम्बोधित कर रही थीं । वज्रगुप्त संसार से विरक्त होकर भगवान् महावीर के पास आया । दीक्षा लेकर तप करने लगा ।
चंडसोम की आत्मा वैडूर्य विमान से एक ब्राह्मण परिवार के | पुत्र के रूप में उत्पन्न हुई, जिसका नाम स्वयम्भूदेव रखा गया। धन कमाने के लिए वह चम्पानगरी गया । वहाँ तमाल वृक्ष के नीचे विश्राम करते हुए उसने किन्हीं चोरों का गड़ा हुआ धन देख लिया। चोरों के भाग जाने पर उसने उस धन को निकाला और अपने घर की ओर चल पड़ा। रास्ते में वह वटवृक्ष के नीचे विश्राम करने लगा । वहाँ उसने एक पक्षी और उसके परिवार के सदस्यों के बीच हुई बातचीत को सुना, जिसमें वह पक्षी संसार त्यागने की अनुमति माँग रहा था । स्वयम्भूदेव की आँखे इससे खुल गयीं और वह भगवान् महावीर के पास हस्तिनापुर चला आया । वहाँ उसने दीक्षा ले ली ।
भगवान् महावीर मगध में राजगृह पहुँचे । वहाँ श्रेणिक का आठ वर्षीय पुत्र महारथ अपने स्वप्न का अर्थ पूछने लगा । महावीर ने बतलाया कि वह कुवलयमाला ( मायादित्य) का जीव है तथा इसी भव से मुक्ति प्राप्त करेगा । महारथ ने दीक्षा ली और अपने अन्य चार साथियों में जा मिला। ये पाँचों भगवान् महावीर के साथ अनेक वर्षों तक रहे। जब उनका अंतिम समय नजदीक आ गया तो उन्होंने सल्लेखना धारण कर ली और आलोचना एवं प्रतिक्रमण करने के बाद अन्तकृत केवली हो गये । १
सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
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कुवलयमाला कहा की कथावस्तु से स्पष्ट है कि ग्रन्थकार प्राचीन भारतीय संस्कृति की दो प्रमुख विचारधाराओं से पूर्णरूप से प्रभावित हैं । वे हैं :- १. पुनर्जन्म एवं कर्मफल की सम्बन्ध श्रृंखला तथा २. श्रात्मशोधन द्वारा मुक्ति की प्राप्ति । सम्पूर्ण ग्रन्थ में इन्हीं दो विचारधाराओं का ही प्रकारान्तर से प्रस्फुटन हुआ है।
थावस्तु से ज्ञात होता है कि ग्रन्थ में क्रोध, मान, माया, लोभ और मोह के मूर्तिमान प्रतीक चंडसोम, मानभट, मायादित्य, लोभदत्त, एवं मोहदत्त के चारचार जन्मों को कहानी है । पहले जन्म में ये पाँचों यथानाम तथा गुण के अनुसार अपनी-अपनी पराकाष्ठा लांघते देखे जाते हैं । चंडसोम क्रोध के कारण अपने भाई-बहिन का वध कर देता है। मानभट मानी होने के कारण अपने मातापिता एवं पत्नी की मृत्यु का कारण बनता है । मायादित्य अपने मित्र से कपटकर
१. अंग्रेजी कथावस्तु के लिए द्रष्टव्य - 'जैन जर्नल' अक्टूबर १९७०.