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________________ ३९४ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन ८. समवसरण रचना (१७८) । ९. दुर्गति एवं सद्गति का निरूपण (१७९) । १०. बालमुनि दीक्षा का वर्णन (१८१)। ११. यक्षप्रतिमा पर जिनमूर्ति की स्थापना (२०५, २१४) । १२. मिच्छामि दुक्कडं (२२५, २२६)। १३. कर्मफल का विवेचन (२३३,३५६) । १४. सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र, पाँच महाव्रत आदि का उपदेश (अनु० २३४)। १५. मठों में अनेकान्तवाद का अध्ययन (२४४) । १६. तीर्थंकर द्वारा उपदिष्ट धर्म (२८३, २८४) । १७. विभिन्न धर्मों के साथ जैनधर्म की तुलना (३३२) । १८. सम्यकत्व, सर्वज्ञता, पाँच महाव्रत, पाँच समिति, श्रावक के अणुव्रत, अतिचार आदि का वर्णन (३३६, ३४६)' । १६. अनित्य, अशरण आदि भावनाओं का वर्णन (३५२)। २०. लेश्याओं का वर्णन (३७६) । २१. वीतराग की भक्ति का फल (३९५)२ । २२. ममत्व को त्यागकर दीक्षा (४०२) । २३. प्रतिक्रमण, पाँच समिति एवं तीन गुप्तियों का वर्णन (४१३) ३ । २४. सल्लेखना का वर्णन (४१९)। २५. पंचपरमेष्ठि को नमस्कार (४२१.४२४)। उपर्युक्त सामग्री के अतिरिक्त कुव० में जैनधर्म के प्रसिद्ध श्लोक का भी उल्लेख हुआ है सर्वमंगल-मांगल्यं सर्वकल्याण - कारणं । प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयति शासनं ॥ पृ० १७५.१० कुछ फुटकर रूप से भी जैनधर्म की विचारधाराओं का कुवलयमाला में यत्र-तत्र उल्लेख हुआ है । यथा-मंदिर में स्वाध्याय करना (९४.१३), जनमंदिरों में दर्शन करने जाना (३१.१७), धर्मलाभ कहना (१८५) दीक्षा लेने के उपकरण (१९४.१९), मरने वाले के कान में पंचनमस्कार का जाप करना (१११.३२), वैराग्यधारण करने का मार्ग तथा प्रत्येकबुद्ध को पहिचान (१४१.१, ५, १४२.१७), साधार्मिक-वात्सल्य (११६.२३, १३७.२०) आदि । १. द्रष्टव्य, पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री - उपासकाध्ययन, भारतीय ज्ञानपीठ । २. द्रष्टव्य, पं० हीरालाल शास्त्री-वसुनन्दिश्रावकाचार, भारतीय ज्ञानपीठ । ३. द्रष्टव्य, मुनि नथमल, जैनधर्म-दर्शन-मनन और मीमांसा ।
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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