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परिच्छेद तीन
धार्मिक जगत्
अन्य धार्मिक मत
उद्योतनसूरि ने अपने ग्रन्थ में कुछ ऐसे आचार्यों के मतों का भी उल्लेख किया है, जो उपर्युक्त प्रमुख धर्मों के अन्तर्गत नहीं आते तथा जिनकी परम्परा बुद्ध और महावीर के युग से चली आयी प्रतीत होती है। इनमें आजीवक, नियतिवादी, अज्ञानवादी एवं भाग्यवादी प्रमुख हैं । कुवलयमाला के सन्दर्भों के आधार पर इनका संक्षिप्त परिचय यहाँ दे देना उचित होगा ।
पंडर- भिक्षुक - 'गाय के दही, दूध, गोरस, घी आदि को मांस की भांति समझकर नहीं खाना पंडर- भिक्षुओं का धर्म है ।" प्राचीन जैनसूत्रों में पंडरभिक्षुओं का पंडुरंग परिव्राजक के नाम से उल्लेख मिलता है निशीथिचूर्ण ( ग्रन्थ ४, पृ० ८६५) के अनुसार आजीवकों की संज्ञा पंडरभिक्षु थी ।" तथा अनुयोगद्वार - चूर्ण ( पृ० १२) में उन्हें ससरक्ख भिक्खुओं का पर्यायवाची माना है । शरीर में श्वेत भस्म लगाने के कारण इन्हें पंडुरंग या पण्डरभिक्षु कहा जाता था " लगभग ६-७वीं सदी में ये शयनादि एवं पहनने के लिए श्वेत दुकूलवस्त्रों का प्रयोग करते थे । डा० वासुदेवशरण अग्रवाल के अनुसार ये लोग ठाठबाट से रहनेवाले महन्त थे ।
१. दहि-दुद्ध-गोरसो वाघ यं व अण्णं व किंपि गाईणं ।
मांसं पिवमा भुंज इय पंडर - भिक्खओ धम्मो ॥ - कुव० २०६.११. २. अनुयोगद्वारसूत्र २०, ज्ञाताधर्मकथा टीका १५.
३. एन० शास्त्री, डवलपमेण्ट आफ रिलीजन इन साउथ इण्डिया, पृ० ११५.
४. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० ४१७ (नोट) ।
५. जर्नल आफ द ओरियण्टल इन्सटीट्यूट पूना, २६, नं० २ पृ० १२०. ६. हर्षचरित - एक अध्ययन, पृ० १०७,