________________
कुवलयमालाकहा का साहित्यिक स्वरूप
१९ कुवलयमालाकहा की साहित्यक विशेषताओं का यहाँ मात्र संकेत दिया जा सका है। ग्रन्थ के रस-विवेचन, अलंकार-योजना, छन्दविधान, ध्वनि-निरूपण, वस्तुवर्णन, साहित्यिक-अभिप्राय एवं लोकतत्त्व के सम्बन्ध में कुवलयमालाकहा का साहित्यिक मूल्यांकन करते समय कभी अलग से विशद प्रकाश डाला जा सकेगा।
कुवलयमालाकहा की अन्य कथाग्रन्थों से तुलना
उद्द्योतनसूरि ने कुव० का जो स्वरूप निश्चित किया है, उसकी ठीकठीक तुलना किसी संस्कृत-प्राकृत के ग्रन्थ से नहीं की जा सकती। किन्तु ग्रन्थ का विषय एवं कथानों की शैली आदि प्राचीन कथा-ग्रन्थों से यत्र-तत्र मिलतीजुलती है। जाति-स्मरण द्वारा सम्यक्त्व की प्राप्ति, कर्मफलों की वैराग्य द्वारा समाप्ति में तरंगवतीकथा से, प्राकृतिक दृश्यों, नगर के वर्णनों, विन्ध्याटवी एवं राजकीर के वर्णनों में बाण की कादम्बरी से,' यक्षप्रतिमा द्वारा ऋषभदेव की अर्चना के प्रसंग में पउम-चरियं से, अश्व द्वारा कुमार का हरण, भिल्लों से संघर्ष आदि के वर्णन में वरांगचरित से एवं पुनर्जन्म, धर्मकथा, दृष्टान्तों के प्रयोग, धार्मिक पृष्ठभूमि आदि के प्रसंग में समराइच्चकहा से कुवलयमाला की तुलनो की जा सकती है। कुछ सिद्धान्त-शास्त्रों के उद्धरण भी कुवलयमालाकहा के धार्मिक प्रसंगों से तुलनीय हैं। कथासरित्सागर को ५९ तरंग में मकरन्दिकोपाख्यान की तुलना कुव० के कथानक से की जा सकती है। किन्तु इन सब ग्रन्थों की अपेक्षा कादम्बरी एवं कुवलयमाला के स्वरूप-गठन आदि में अधिक साम्य है । यथा :
(१) नववधू से कथा की उपमा (का० ८.९, कु० ४.१८)। (२) दुर्जन-सज्जन स्मरण (का० ५.६, कु० ५.२६)। (३) नायक-नायिका की प्रधान कथा दोनों में । (४) पुत्रविहीना महारानी का पुत्र प्राप्ति के लिए प्रयत्न । (५) पिता के साथ कुमार की क्रीड़ा का वर्णन । (६) नगर-वर्णन की शैली में साम्य । (७) का० में जावालिऋषि एवं कुव० में धर्मनन्दन आचार्य कथा के मूल
वाचक। (८) का० में महाश्वेता एवं कीर तथा कुव० में ऐणिका एवं राजकीर
की कथा । (९) पूर्वजन्म का वृतान्त दोनों में। (१०) शृंगार-कथा होते हुए दोनों का दार्शनिक प्रतिपाद्य । इत्यादि १. द्रष्टव्य-'कुवलयमालादम्बर्योस्तुलनात्मकध्ययनम्'
-प्रो० शालिग्राम उपाध्याय, मागधम्, अप्रैल १९६९