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प्रमुख धर्म
.३६७ पुष्कर-पुष्कर प्राचीन समय से ही तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध रहा है महाभारत (वनपर्व ८३.२६,२७) में इसे सिद्धि प्राप्ति का साधन कहा है। पद्मपुराण में इसे इस लोक का सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कहा है।' अजमेर के नजदीक स्थित पुष्कर के साथ इसका सम्बन्ध होना चाहिये क्योंकि यह प्राचीन तीर्थ स्थान के रूप में प्रसिद्ध है। पृथ्वीराजविजय नामक ग्रन्थ में पुष्कर का तीर्थ के रूप में सुन्दर काव्यात्मक वर्णन हुआ है।
गंगास्नान-उपर्युक्त तीर्थस्थानों का महत्त्व वहाँ के जल में स्नान करने के कारण अधिक प्रतीत होता है। जल में स्नान कर पवित्र होने का अभिप्राय हिन्दूधर्म में प्राचीन समय से सम्मिलित हो गया था। कुवलयमाला में गंगास्नान के अनेक उल्लेख हैं (४८.२७, ५५.२१,७१.२५)२ मानभट को माता-पिता एवं पत्नि के बध का कारण होने से गंगा-संगम में नहाने की सलाह दी जाती है, जहाँ भैरव-भट्टारक के सामने आत्मवध करने से समस्त पाप छूट जाते हैं। गंगासंगम पर आत्मबध करने में धर्म मानने की परम्परा तत्कालीन समाज में हिन्दूधर्म में प्रचलित हो चुकी थी। श्री पी० के० गुणे ने इस सम्बन्ध में विशेष प्रकाश डाला है।
प्रयाग के गंगा-संगम के अतिरिक्त गंगा-संगम भो तीर्थस्थान माना जाने लगा था, जहाँ गंगा और सागर का मिलन होता है। इस स्थान के सम्बन्ध में कहा जाता है कि जब तीर्थयात्री गंगा-संगम में स्नान करता था तो उसे अपनी जिन्दगी से वैराग्य हो जाता था और वह वहीं भैरव को मूत्ति के समक्ष अपने जीवन का अन्त कर लेता था। इस प्रसंग से ऐसा लगता है कि गङ्गा नदी के प्रमुख स्थानों पर शैवधर्म के ऐसे साधुओं का अड्डा जम गया था जो आत्मवध, मांसभक्षण, रुधिरपान आदि को अपना धर्म समझते थे। गङ्गासागर में मरण से मोक्ष की प्राप्ति को धारणा इन्हीं के उपदेशों का परिणाम रहा होगा।"
प्रयाग का अक्षय वट-सातवीं-आठवीं सदी में गङ्गा-स्नान को तरह प्रयाग का अक्षयवट वृक्ष भी तीर्थ-यात्रियों का आकर्षण का प्रमुख केन्द्र बन गया था। कुवलयमाला में मथुरा के अनाथमंडप में स्थित कुष्ठरोगी इस बात से परिचित थे कि प्रयाग के वटवृक्ष के समीप बलिदान करने से कुष्ट रोग नष्ट हो
१. नास्मात्परतरं तीर्थं लोकेऽस्मिन्पठ्यते--पद्म पु० ५.२७-२८. २. गंगा-जलम्मि पहाओ सायर-सरियासु तह य तित्थेसु ।
धुयइ मलं किर पावं ता सुद्धो होई धम्मेण ।।-कुव० २०५.७ ३. महापावाई गंगासंगमे व्हायह भइरव-भट्टारय-पडियहं णांसति ।-कुव० ५५.२१ ४. द्रष्टव्य, 'रिलीजियस सुसाइड एट द संगम', एस० के० डे० फेलिसियेशन वालूम, बुलेटन आफ द डेकन कालेज, आर० I
उद्धत, सरकार, स्टडीज इन द ज्योग्राफी आफ एशियंट एण्ड मिडिएवल इण्डिया, पृ० १७९.