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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन पर पारूढ़)।' बधेरा से प्राप्त शिव की योगीश्वर मूर्ति से कुवलयमाला का यह कथन प्रमाणित होता है ।२ साहित्य में तो योगिराज शिव के अनेक उल्लेख हैं।
महाकाल-महाकवि वाण के वाद उद्योतनसूरि द्वारा महाकाल का उल्लेख एक महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ है। आठवीं शताब्दी में भी जोग, जोगिनी, सिद्ध, तान्त्रिक एवं यन्त्रवादियों के द्वारा सेवित महाकाल शिव की आराधना तथा प्रभाव का इस ग्रन्थ से पता चलता है। उस समय महाकाल की आज्ञा समस्त पृथ्वी के देवी-देवता मानते थे। उद्योतन ने महाकाल के मन्दिर में दी जाने वाली बलि आदि का जो वर्णन किया है, वह पूर्व वर्णनों से विस्तृत एवं सूक्ष्म है ।
उज्जयिनी के महाकाल शिव को उद्द्योतन ने महाकाल भट्टारक के रूप भी स्मरण किया है। महाकाल भट्टारक की प्रसिद्ध उज्जयिनी से मथुरा तक व्याप्त थी। भक्तों में ऐसा विश्वास था कि महाकाल भट्टारक की सेवा में जो व्यक्ति ६ माह रह लेता है उसका कोढ़ रोग जड़ से समाप्त हो जाता है।" उद्द्योतन द्वारा महाकाल शिव का उल्लेख करना इस बात का प्रमाण है कि राजस्थान में भी महाकाल शिव की वही प्रतिष्ठा थी कि प्रतिवर्ष हजारों यात्री राजस्थान से उनके दर्शनों के लिए उत्तर भारत में जाते रहे होंगे।
___ रुद्र-उद्योतन ने अपने ग्रन्थ में रुद्र का केवल तीन बार अन्य देवताओं के साथ उल्लेख किया है। रानी प्रयंगुश्यामा के कहने पर पुत्र प्राप्ति के लिए राजा ने पूस नक्षत्र एवं भूत दिव। में (पूस-णक्खत-जुत्त-भूय-दियहे-१४.४)। स्कन्द एवं रुद्र आदि देवताओं को वलि प्रदान की (१४.५) । दूसरे प्रसंग में स्कन्द एवं रुद्र आदि देवताओं को सरागी कहा गया है, जो भक्ति से प्रसन्न होकर वर प्रदान करते हैं (२५६.३१) । तीसरे प्रसंग में कहा गया है कि सन्ध्या होते ही नगर के रुद्र भवनों में मनोहर गीत होने लगते थे (८२.३२) । तथा एक अन्य प्रसंग में कुवलयचन्द्र ने विन्ध्यगिरि में ऐणिका नामक तपस्विनी की कुटिया में पुत्र-वीजक वृक्ष से बनी हुई रुद्राक्ष की मालाओं को देखा था (१२२.५) । १. अण्णि-पणि संकर-जइसय भूई-परिभोग-ढेक्कत-दरिय वसहेक्क-वियावड व त्ति ।
- कुव० १४९.१५. २. श०-रा० ए०, पृ० ३७६. ३. सयल-धरा-मंडलब्भंतरे जोय-जोयणी-सिद्ध-तंत-संत-सेवियस्स महाकालस्स व तुज्झ
देव-देवा वि आणं पडिच्छंति । ---१२.२६. The description given by Uddyotanasūri is much more detailed about the bloody affering and secrifices and use as wine and the skull of human beings and Vetāla-Sadhana carried
on the temple.-Kuv. Int., p. 115. (V.S, Agrawala). ५. महाकाल-भडारयहं छम्मासे सेवण्ण कुणइजेण मूलहेज्जे फिट्टइ।-कुव० ५५.१८.