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परिच्छेद तो चित्रकल
उद्योतनसूरि ने कुवलयमालाकहा में चित्रकला के सम्बन्ध में विस्तत जानकारी दी है। भित्तिचित्र एवं पटचित्र का विशेष वर्णन इस ग्रन्थ में हम है। चित्रकला की विषयवस्तु, निर्माण प्रक्रिया एवं उसमें प्रयुक्त रंग आदि के सम्बन्ध में जानने के लिए ग्रन्थ में उल्लिखित चित्रकला के सभी सन्दर्भो का परिचय प्राप्त करना आवश्यक है। उद्योतनसूरि ने इन प्रसंगों में चित्रकला का वर्णन किया है:१. राजा दृढ़वर्मन् के दरबार में अन्य विद्वानों के साथ चित्रकला में प्रवीण
अण्णे चित्तयम्म-कुसला (१६.२४) विद्वान् भी उपस्थित रहते थे। २. कुवलचन्द्र का जन्म होते ही अन्तःपुर की परिचारिकाएँ अनेक कार्यों
में व्यस्त हो गयीं । एक ने कहा-प्रिय सखी पुरन्दरदत्ते, भवन को सभी भित्तियों पर प्रतिबिम्बित मनोहर चित्रकर्म से व्याप्त एवं पूर्णिमा के चन्द्रमा की पंक्तियों से रेखांकित मंगलदर्पणमाला की
सम्हाल तू स्वयं क्यों नहीं करती ? (१७.२५, २६)। ३. कुमार कुवलयचन्द्र ने ७२ कलाओं में चित्रकला का भी अभ्यास किया
था-चित्त-कला-जुत्तीओ (२२.६) ।
४. शाम होते ही कामिनीगृहों में चित्रभीतियों को साफ किया जाता
था-पप्फोडेसु चित्त-भित्तीओ (८३-४)। ५. कुवलयचन्द्र कुवलयमाला से विवाह कर अयोध्या की तरफ लौट
रहा था। रास्ते में चित्रपट लिए हुए एक मुनि से उसकी भेंट हुई। परिचय पूछने पर मुनि ने इस प्रकार कहना प्रारम्भ कियाः