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________________ नाट्य कला २७७ किया जाता था।' शृंगार, वीर, करुण आदि रसों से युक्त नाटक अभिनीत होते थे। नट पात्रविशेषों के चरित्र का अनुकरण करने में इतने पटु होते थे कि उनकी तुलना बनावटी चरित्र वाले व्यक्तियों से दी जाती थी। तथा नट पात्रों के अनुरूप बनावटी चेहरे धारण कर लोगों का मनोरंजन करते थे। ___ कुवलयमालाकहा के उक्त सन्दर्भो से नाट्य की निम्नलिखित प्रमुख विशेषतायें स्पष्ट होती हैं : १. नाट्य में पात्रों के चरित्र का अनुकरण अभिनय द्वारा किया जाता था, नाट्यशास्त्र के इस कथन का उद्द्योतन ने समर्थन किया है। २. पात्र की वेषभूषा के अनुकरण द्वारा नट उससे तादात्म्य सम्बन्ध स्थापित ___ करता था। इसका संकेत दशरूपककार ने भी किया है। ३. नाट्य प्रधान रूप से रस के आश्रित रहता है। सामाजिक को रसानु भूति कराना ही नाट्य का चरम लक्ष्य है। शृंगार, वीर, करुण रस आदि की परिपुष्टि नायक को प्रकृति के अनुसार नाटक में की जाती है, यह बात भी उद्द्योतन स्वीकार करते हैं । लोक-नाट्य कुवलयमालाकहा में चंडसोम की कथा के प्रसंग में ग्रन्थकार ने लोकनाट्य से सम्बन्धित विस्तृत जानकारी दी है। शरद् ऋतु में पृथ्वी को धन-धान्य से समृद्ध देखकर आनन्दित होकर नट, नर्तक, मुष्टिक, चारणगण आदि ने गाँवों में घमना प्रारम्भ कर दिया। लोककलाओं द्वारा प्रजा का मनोरंजन करनेवाले ऐसे कितने ही कलाकारों के नाम प्राकृत साहित्य में मिलते हैं। उनमें नट, नर्तक, मोष्टिक और चारण (कथावाचक) आदि प्रमुख हैं। दशहरा पूजकर अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए निकलने की परम्परा आज भी ग्रामीण-जीवन में कलाकारों में पायी जाती है। गुजरात एवं मध्यभारत में पायी जानेवाली भवाई जाति के लोक कलाकार दशहरा पूजकर अपनी यात्रा पर निकल जाते हैं १. भो भो भरह-पुत्ता, लिहह सायरदत्तं इमिणा सुहासिएण लक्खं दायव्वं, १०३.१९. २. इमिणा अलिय-कय-कवड-पंडिय-णड-पेडय-सरिसेणं-१७३.८. ३. णड-पडिसीसय-जडा-कडप्प-तरंग-भंगुर-चल-सहावेण इमिणा मायाइच्चेणं, (५९.१५). ४. द्रष्टव्य-ज०-जै० आ० स०, पृ० ३९६.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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